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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को फटकारा, बार-बार दिए गए आश्वासनों के उल्लंघन पर अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आदेश

बादल चटर्जी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज में अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आदेश दिया, PDA और बिल्डरों को आश्वासन तोड़ने और नागरिक अधिकार प्रभावित करने पर फटकार।

Shivam Y.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण को फटकारा, बार-बार दिए गए आश्वासनों के उल्लंघन पर अवैध निर्माण ध्वस्त करने का आदेश

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को प्रयागराज में बेतरतीब और अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए न्यू कटरा के एक आवासीय इलाके में स्वीकृत नक्शे से बाहर बने हिस्सों को तुरंत गिराने का निर्देश दिया। यह मामला तब सामने आया जब एक स्थानीय निवासी ने शिकायत की कि बगल में हो रहा अवैध निर्माण उसके पुश्तैनी, पुराने मकान के लिए खतरा बन रहा है और हवा व धूप भी रोक रहा है - जिसे अदालत ने हल्के में लेने से इनकार कर दिया।

पृष्ठभूमि

विवाद कटरा हाउसिंग स्कीम, दिलकुशा पार्क स्थित प्लॉट नंबर 64 को लेकर है, जहां मालिकों ने प्रयागराज विकास प्राधिकरण (PDA) से आवासीय निर्माण की अनुमति ली थी। याचिकाकर्ता बादल चटर्जी के अनुसार, निर्माण स्वीकृत नक्शे से कहीं आगे निकल गया - न तो सेटबैक छोड़ा गया, अतिरिक्त मंजिलें बना दी गईं और बेसमेंट भी तय सीमा से ज्यादा गहरा खोद दिया गया।

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स्थिति तब और गंभीर हो गई जब PDA ने पहले तो परिसर सील किया, लेकिन बाद में मालिकों में से एक के हलफनामे के आधार पर सील हटा दी। उस हलफनामे में स्वयं ही अवैध हिस्से हटाने का आश्वासन दिया गया था। इसके बावजूद निर्माण जारी रहा। अधिकारियों और बिल्डरों की मिलीभगत का आरोप लगाते हुए याचिकाकर्ता ने अंततः हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुधांशु चौहान की पीठ ने इस मामले में कड़ा रुख अपनाया। अदालत ने सवाल उठाया कि बिना अवैध निर्माण हटाए, केवल एक हलफनामे के आधार पर सील खोलने का अधिकार आखिर किस कानून के तहत दिया गया। पीठ ने टिप्पणी की, “हमें समझ नहीं आता कि किस अधिकार के तहत ऐसी अनुमति दी गई।”

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पड़ोसी को शिकायत करने का अधिकार नहीं होने की दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि अवैध निर्माण से ताजी हवा, धूप और भवन की सुरक्षा जैसे मूल अधिकार प्रभावित होते हैं। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि स्वयं निर्माणकर्ता ने स्वीकार किया था कि बेसमेंट में पानी भरने से बगल के मकान को नुकसान पहुंच सकता है।

बार-बार दिए गए आश्वासनों को हल्के में लेने पर भी कोर्ट नाराज दिखा। पीठ ने कहा, “प्रतिवादियों का आचरण अदालत को गुमराह करने जैसा है,” और यह भी जोड़ा कि अदालतें कानून का पालन करने वाले नागरिकों के लिए हैं, न कि उन लोगों के लिए जो नियमों का खुलेआम उल्लंघन करते हैं।

निर्णय

हाईकोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि निर्माण उस सीमा से कहीं आगे है जिसे कानूनी रूप से नियमित किया जा सकता है। ऐसे में अदालत ने PDA को निर्देश दिया कि जो भी हिस्सा कंपाउंडेबल नहीं है, उसे तुरंत ध्वस्त किया जाए। अतिरिक्त समय या वैकल्पिक व्यवस्था की मांग को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि विध्वंस की प्रक्रिया पूरी की जाए।

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अदालत ने चेतावनी दी कि यदि अगली तारीख तक ध्वस्तीकरण पूरा नहीं हुआ, तो वह वर्तमान और पूर्व दोनों उपाध्यक्षों से स्पष्टीकरण मांग सकती है कि आखिर अवैध निर्माण को इतने समय तक कैसे चलने दिया गया। मामले की अगली सुनवाई तय करते हुए उपाध्यक्ष को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहने का निर्देश दिया गया।

Case Title: Badal Chatterjee v. State of Uttar Pradesh & Others

Case No.: Writ – C No. 38819 of 2025

Case Type: Civil Writ Petition (Illegal Construction / Building Bye-laws)

Decision Date: December 15, 2025

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