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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने औरैया सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द किया, कहा कि आत्महत्या के मामले में उकसावे को साबित करने के लिए केवल वैवाहिक झगड़े पर्याप्त नहीं हैं

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में औरैया सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया, यह फैसला देते हुए कि केवल वैवाहिक झगड़े ही उकसाने का सबूत नहीं हैं। - रचना देवी और 2 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य।

Shivam Y.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने औरैया सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द किया, कहा कि आत्महत्या के मामले में उकसावे को साबित करने के लिए केवल वैवाहिक झगड़े पर्याप्त नहीं हैं

एक अहम फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने औरैया सेशन कोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें तीन आरोपियों को आत्महत्या के लिए उकसाने (

पृष्ठभूमि

यह मामला 14 नवंबर 2022 को औरैया के दिबियापुर थाने में दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। मृतक के पिता ने शिकायत दर्ज कराई थी कि उनकी बहू रचना देवी (पुनरीक्षणकर्ता संख्या 1) और उसके माता-पिता (पुनरीक्षणकर्ता संख्या 2 और 3) ने उनके बेटे को लगातार अपमानित किया। उनके अनुसार, इसी सतत उत्पीड़न के चलते उनके बेटे ने 13 नवंबर 2022 को आत्महत्या कर ली।

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एफआईआर में यह भी उल्लेख था कि पति-पत्नी के बीच पहले से विवाद चल रहा था और पत्नी ने पति व उसके परिवार पर धारा 498-A, 323, 504, 506 आईपीसी दहेज निषेध अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज कराया था। हालांकि बाद में कुछ मामले सुलझ भी गए, लेकिन तनाव बना रहा और अंततः यह दुखद घटना हुई।

ट्रायल कोर्ट ने 19 अक्टूबर 2023 को आरोपियों की डिस्चार्ज अर्जी खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ हाईकोर्ट में पुनरीक्षण दाखिल हुआ।

कोर्ट की टिप्पणियाँ

जस्टिस जैन ने पड़ोसियों व गवाहों के बयान पर गौर किया, जिनसे यह सामने आया कि पति-पत्नी के बीच अक्सर झगड़े होते थे। लेकिन अदालत ने साफ कहा कि ,

“सिर्फ वैवाहिक कलह या घरेलू झगड़े, चाहे कितने भी अप्रिय क्यों न हों, अपने आप में आत्महत्या के लिए उकसावे के बराबर नहीं माने जा सकते।”

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बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया, जिनमें रमेश कुमार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और स्वामी प्रह्लाददास बनाम मध्य प्रदेश राज्य शामिल हैं। अदालत ने कहा कि झगड़े के दौरान गुस्से में कहे गए शब्द जैसे “जा और मर जा” को तब तक उकसावा नहीं माना जा सकता जब तक कि उसके पीछे आत्महत्या करवाने की साफ नीयत न हो।

अदालत ने कहा,

“कानून यह तय करता है कि डिस्चार्ज के चरण में देखना होता है कि क्या आरोपित अपराध का प्रथमदृष्टया मामला बनता है या नहीं। सामान्य उत्पीड़न के आरोप, बिना किसी ठोस सबूत के, धारा 306 आईपीसी के तहत मुकदमे को बनाए नहीं रख सकते।”

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हाईकोर्ट ने आगे कहा कि भले ही अभियोजन की कहानी को जस का तस मान लिया जाए, इसमें यह साबित करने जैसा कुछ नहीं है कि आरोपियों का इरादा मृतक को आत्महत्या की ओर धकेलने का था। अदालत ने यह भी जोड़ा कि घरेलू जीवन में मतभेद समाज में आम हैं और आत्महत्या करना अक्सर पीड़ित की मानसिक अवस्था पर निर्भर करता है, न कि केवल झगड़ों पर।

फैसला

निष्कर्ष में जस्टिस जैन ने माना कि ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्यों का ठीक से मूल्यांकन नहीं किया और उसका आदेश अवैध है। उन्होंने कहा कि डिस्चार्ज अर्जी खारिज करना गलत था और उसे बहाल किया जाना चाहिए।

“ऊपर की चर्चा से स्पष्ट है कि पुनरीक्षणकर्ताओं के खिलाफ धारा 306 आईपीसी के तहत कोई प्रथमदृष्टया अपराध नहीं बनता… अतः दिनांक 19.10.2023 का आदेश निरस्त किया जाता है,” कोर्ट ने कहा और पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली।

यह मामला:- रचना देवी और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य, आपराधिक पुनरीक्षण संख्या 5794/2023-फिलहाल इस चरण में आरोपियों के बरी होने के साथ समाप्त हुआ।

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