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दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाकशुदा जोड़े के बीच ₹33 लाख रुपये के पूर्व समझौते के बावजूद भरण-पोषण का मामला रद्द करने से इनकार किया, कहा बाल अधिकार स्वतंत्र

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 33 लाख रुपये के तलाक समझौते के बावजूद बच्चे के स्वतंत्र अधिकारों का हवाला देते हुए भरण-पोषण का मामला रद्द करने से इनकार कर दिया; मामले को पारिवारिक अदालत को भेज दिया। - उमर हारिस बनाम युसरा मेराज एवं अन्य।

Shivam Y.
दिल्ली उच्च न्यायालय ने तलाकशुदा जोड़े के बीच ₹33 लाख रुपये के पूर्व समझौते के बावजूद भरण-पोषण का मामला रद्द करने से इनकार किया, कहा बाल अधिकार स्वतंत्र

दिल्ली हाईकोर्ट ने 23 सितम्बर 2025 को यह कहते हुए एक भरण-पोषण याचिका को ख़ारिज करने से इनकार कर दिया कि बच्चे के अधिकार माता-पिता के बीच हुए किसी भी समझौते से प्रभावित नहीं हो सकते। न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने याचिका का निस्तारण करते हुए साफ कहा कि बच्चे के भरण-पोषण के अधिकार स्वतंत्र हैं और समझौते से खत्म नहीं होते।

पृष्ठभूमि

मामला याचिकाकर्ता उमर हारिस और उनकी पूर्व पत्नी युसरा मेराज से जुड़ा है। दोनों का विवाह जनवरी 2018 में हुआ था और अक्टूबर 2019 में उनका एक बेटा पैदा हुआ। मई 2021 में विवादों के कारण दोनों अलग हो गए। उसी साल 25 नवम्बर 2021 को दोनों ने तलाक-ए-खुला के तहत समझौता किया, जिसमें पत्नी ने स्वयं और बच्चे के लिए ₹33 लाख की राशि पूर्ण और अंतिम सेटलमेंट के रूप में स्वीकार कर ली। इसके साथ ही बच्चे की कस्टडी माँ को दी गई और पिता को मुलाक़ात का अधिकार मिला।

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इसके बावजूद, सितम्बर 2023 में युसरा ने परिवार न्यायालय में ₹1.2 लाख मासिक भरण-पोषण की मांग करते हुए याचिका दाख़िल की। उमर ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी और दलील दी कि सभी दावे पहले ही निपट चुके हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी पूर्व पत्नी जानबूझकर मुलाक़ात के अधिकार में बाधा डालती हैं और यह मुकदमा सिर्फ़ परेशान करने के लिए दाख़िल किया गया है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति कृष्णा ने कहा कि भले ही पति-पत्नी ने आपस में समझौता कर लिया हो, लेकिन बच्चे का स्वतंत्र भरण-पोषण का अधिकार बना रहता है। कोर्ट ने कहा -

“25.11.2021 का समझौता याचिका को सीधे तौर पर ख़ारिज करने का आधार नहीं हो सकता, ख़ासकर तब जब इसमें बच्चे के भरण-पोषण की मांग भी शामिल है।”

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पत्नी द्वारा धारा 125(4) दंप्रसं (Cr.P.C.) के तहत अपने अधिकार छोड़ देने की दलील पर अदालत ने स्पष्ट किया-

“एक बार पत्नी का तलाक हो जाने पर, उसे भरण-पोषण का अधिकार स्वतः मिल जाता है, चाहे तलाक का कारण या तरीका कोई भी हो।”

अदालत ने यह भी कहा कि 2021 के समझौते के बाद कोई “परिस्थितियों में बदलाव" हुआ या नहीं, यह तथ्यात्मक प्रश्न है जिसे परिवार न्यायालय ही देखेगा। न्यायमूर्ति कृष्णा ने यह भी टिप्पणी की कि पति ने केवल तभी याचिका दायर की जब मामला अंतरिम भरण-पोषण सुनवाई पर आया, इससे उसकी दलील कमजोर होती है।

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निर्णय

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह मामला “तथ्य और कानून के मिले-जुले प्रश्नों” से जुड़ा है, इसलिए इस स्तर पर भरण-पोषण याचिका को ख़ारिज करना उचित नहीं होगा। अदालत ने कहा कि उमर हारिस सभी आपत्तियाँ, जिसमें पूर्व सेटलमेंट का हवाला भी शामिल है, परिवार न्यायालय में रख सकते हैं।

कोर्ट ने कहा-

“यह मुद्दे मूल रूप से तथ्यों पर निर्भर करते हैं… इसलिए यह भरण-पोषण याचिका को ख़ारिज करने का उपयुक्त मामला नहीं है।”

इसके साथ ही याचिका का निस्तारण कर दिया गया।

Case Title: Umar Haris vs. Yusra Meraj & Anr.

Date of Decision: 23rd September, 2025

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