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झारखंड में ब्लड सिस्टम पर हाईकोर्ट की सख़्त टिप्पणी: वर्षों की निगरानी के बाद स्वैच्छिक रक्तदान लागू करने के निर्देश

कोर्ट अपनी ओर से और अन्य बनाम झारखंड राज्य और अन्य, झारखंड हाईकोर्ट ने ब्लड सिस्टम की खामियों पर सख़्त रुख अपनाया, स्वैच्छिक रक्तदान और जिला स्तर पर यूनिट स्थापित करने के आदेश दिए।

Vivek G.
झारखंड में ब्लड सिस्टम पर हाईकोर्ट की सख़्त टिप्पणी: वर्षों की निगरानी के बाद स्वैच्छिक रक्तदान लागू करने के निर्देश

रांची स्थित झारखंड हाईकोर्ट की अदालत में गुरुवार को माहौल कुछ अलग था। यह कोई नई जनहित याचिका नहीं थी, बल्कि वही मामला था जिसे अदालत खुद पिछले कई सालों से देख रही है। फिर भी, इस बार पीठ का धैर्य साफ तौर पर जवाब दे चुका था।

राज्य में खून की उपलब्धता, ब्लड बैंकों की हालत और मरीजों के परिजनों पर डाले जा रहे बोझ को लेकर अदालत ने खुलकर नाराज़गी जताई। सुनवाई के दौरान यह बात बार-बार उभरी कि काग़ज़ों में नीति है, लेकिन ज़मीन पर हालात जस के तस हैं।

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Background

यह मामला कई जनहित याचिकाओं को जोड़कर सुना गया, जिनमें एक याचिका अदालत द्वारा स्वयं संज्ञान लेकर दर्ज की गई थी। कुछ याचिकाएं 2020 और 2021 से लंबित थीं। मुद्दा सीधा था-झारखंड में “रिप्लेसमेंट ब्लड डोनेशन” की प्रथा अब भी चल रही है, जबकि राष्ट्रीय ब्लड नीति इसके खिलाफ है।

नीति साफ कहती है कि मरीजों के रिश्तेदारों को रक्त की व्यवस्था करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। इसके बावजूद, अस्पतालों में आज भी यही हो रहा है। राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल की कई बैठकों के बावजूद हालात में कोई ठोस बदलाव नहीं आया, यह तथ्य खुद राज्य सरकार के दस्तावेज़ों से सामने आया।

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Court’s Observations

मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने बेहद स्पष्ट शब्दों में कहा कि राष्ट्रीय ब्लड नीति का उद्देश्य 8.5, यानी बिना रिप्लेसमेंट के रक्त उपलब्ध कराना, झारखंड में लागू ही नहीं हुआ।

अदालत ने राज्य द्वारा दाखिल आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि जुलाई 2025 में कुल रक्त संग्रह का केवल 13 प्रतिशत ही स्वैच्छिक रक्तदान से आया। अगस्त और सितंबर में भी यह आंकड़ा 25 प्रतिशत तक ही पहुंच सका। पीठ ने टिप्पणी की, “यह स्थिति स्वीकार्य नहीं है, खासकर तब जब मामला मरीजों की जान से जुड़ा हो।”

अदालत ने यह भी पाया कि निजी अस्पताल और ब्लड बैंक रक्तदान शिविर लगाने की अपनी जिम्मेदारी निभाने में नाकाम रहे। थैलेसीमिया और सिकल सेल जैसी गंभीर बीमारियों के लिए बने डे-केयर सेंटरों में जरूरी दवाएं तक उपलब्ध नहीं थीं।

एक और गंभीर पहलू यह रहा कि 2018 में हर जिले में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट लगाने का जो वादा किया गया था, वह अब तक पूरा नहीं हुआ। हेल्पलाइन नंबर 104 पर भी न तो शिकायत दर्ज हो पा रही थी, न ही वास्तविक मदद मिल रही थी। स्टाफ की भारी कमी पर भी अदालत ने चिंता जताई।

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Decision

इन सभी परिस्थितियों को देखते हुए हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग और राज्य ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल को निर्देश दिया कि राज्य में 100 प्रतिशत रक्त संग्रह स्वैच्छिक रक्तदान के माध्यम से सुनिश्चित किया जाए।

निजी अस्पतालों और ब्लड बैंकों को अपने स्तर पर रक्तदान शिविर आयोजित करने का आदेश दिया गया। अदालत ने तीन महीने के भीतर हर जिले में ब्लड कंपोनेंट सेपरेशन यूनिट स्थापित करने, सभी डे-केयर सेंटरों को पूरी तरह कार्यशील बनाने और रक्त की व्यवस्था के लिए एक अलग शिकायत निवारण प्रणाली-मोबाइल ऐप, वेबसाइट और टोल-फ्री नंबर सहित-तैयार करने के निर्देश दिए।

साथ ही, हर तीन महीने में ब्लड बैंकों के निरीक्षण और पर्याप्त स्टाफ की नियुक्ति सुनिश्चित करने को कहा गया। अदालत ने इन निर्देशों के पालन की रिपोर्ट 20 मार्च 2026 को पेश करने का आदेश दिया।

Case Title: Court on Its Own Motion & Others vs. State of Jharkhand & Others

Case No.: W.P. (PIL) No. 6062 of 2025 (along with W.P. (PIL) Nos. 2971 of 2020, 2413 of 2021 & 4688 of 2025)

Case Type: Public Interest Litigation (PIL)

Decision Date: 18 December 2025

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