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बॉम्बे हाईकोर्ट ने धुले सहकारी बैंक मामले में नई जांच की याचिका खारिज की, याचिकाकर्ता पर लागत लगाई

अनिल उमराव गोटे बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, बॉम्बे हाईकोर्ट ने धुले सहकारी बैंक घोटाले में नई जांच की मांग खारिज की, याचिकाकर्ता के अधिकार से इनकार किया, ₹1 लाख लागत जब्त की।

Shivam Y.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने धुले सहकारी बैंक मामले में नई जांच की याचिका खारिज की, याचिकाकर्ता पर लागत लगाई

औरंगाबाद पीठ में भरी अदालत के माहौल के बीच बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ संकेत दे दिया कि वह उस जांच को दोबारा खोलने के मूड में नहीं है, जो पहले ही अपने अंजाम तक पहुंच चुकी है। धुले के एक पुराने सहकारी बैंक घोटाले में आगे की जांच की मांग को लेकर पूर्व विधायक अनिल उमराव गोटे द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया। इतना ही नहीं, अदालत ने उनके द्वारा जमा की गई लागत राशि को भी जब्त करने का आदेश दिया। यह आदेश 16 दिसंबर 2025 को सुनाया गया, जिससे लंबे समय से चल रहा यह प्रक्रियात्मक विवाद समाप्त हो गया।

पृष्ठभूमि

इस मामले की जड़ें दादासाहेब रावल को-ऑपरेटिव बैंक में कथित बड़े पैमाने पर हुई धन की हेराफेरी से जुड़ी हैं, जहां बिना पर्याप्त गारंटी के ऋण मंजूर किए जाने के आरोप लगे थे, जिससे बैंक को भारी नुकसान हुआ। मूल शिकायत वर्ष 2009 में एक जमाकर्ता द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसके बाद मजिस्ट्रेट ने आपराधिक कानून के तहत जांच के आदेश दिए थे।

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समय के साथ यह जांच स्थानीय पुलिस से राज्य सीआईडी तक पहुंची। फॉरेंसिक ऑडिट कराया गया, गिरफ्तारियां हुईं और अंततः आरोपपत्र दाखिल किया गया। गोटे, जो न तो बैंक के जमाकर्ता थे और न ही पदाधिकारी, ने हाईकोर्ट का रुख करते हुए दावा किया कि प्रभावशाली आरोपियों को बचाया जा रहा है और उन्होंने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो या किसी विशेष जांच दल की निगरानी में जांच कराने की मांग की।

अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति संदीपकुमार सी. मोरे और न्यायमूर्ति वाई.जी. खोब्रागड़े की खंडपीठ ने सबसे पहले यह परखा कि क्या गोटे को ऐसी याचिका दायर करने का अधिकार भी है। हालांकि अदालत ने इस स्थापित सिद्धांत को स्वीकार किया कि “कोई भी व्यक्ति आपराधिक कानून को सक्रिय कर सकता है”, लेकिन खंडपीठ ने शिकायत दर्ज कराने और रिट याचिका के माध्यम से आगे की जांच की मांग करने के बीच स्पष्ट अंतर रेखांकित किया।

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पीठ ने कहा, “याचिकाकर्ता न तो बैंक का सदस्य है और न ही जमाकर्ता, और उसे कोई व्यक्तिगत नुकसान नहीं हुआ है।” अदालत ने यह भी नोट किया कि वास्तविक शिकायतकर्ता पहले ही कानूनी उपाय अपना चुका है और पूर्व में जांच से जुड़े आदेश प्राप्त कर चुका है। न्यायाधीशों ने यह भी ध्यान दिलाया कि राज्य सीआईडी ने आगे की जांच पूरी कर ली है और फरवरी 2025 में 31 आरोपियों के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया जा चुका है।

जनहित का हवाला देकर दायर याचिका से अदालत खास प्रभावित नहीं हुई। पीठ ने कहा कि इसी तरह की मांगें पहले प्रभावित व्यक्तियों द्वारा उठाई जा चुकी हैं, जिन्हें या तो निपटा दिया गया या बाद में वापस ले लिया गया। एक मौके पर अदालत ने टिप्पणी की कि यह याचिका “जांच एजेंसियों पर दबाव बनाने” का प्रयास प्रतीत होती है।

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निर्णय

अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि जिस मामले में जांच पूरी हो चुकी है और आरोपपत्र दाखिल हो चुका है, उसमें आगे की जांच की मांग करने का याचिकाकर्ता को कोई लोकस स्टैंडी नहीं है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने रिट याचिका खारिज कर दी और याचिकाकर्ता द्वारा जमा किए गए ₹1 लाख की राशि जब्त करने का आदेश दिया। अदालत ने निर्देश दिया कि यह राशि दो सामाजिक संस्थाओं को, बेसहारा लोगों के कल्याण के लिए, बराबर-बराबर दी जाए। इसी के साथ अदालत ने मामले में आगे हस्तक्षेप से इनकार करते हुए कार्यवाही समाप्त कर दी।

Case Title: Anil Umrao Gote vs The State of Maharashtra and Others

Case Type: Criminal Writ Petition

Case No.: Criminal Writ Petition No. 476 of 2020

Date of Judgment/Order: 16 December 2025

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