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मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता का गर्भपात कराने से इनकार किया, बाल कल्याण समिति को प्रसव के बाद बच्ची की देखभाल करने का निर्देश दिया

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता के 36 सप्ताह के गर्भ का गर्भपात कराने से इनकार कर दिया, और बाल कल्याण समिति को नवजात शिशु की सुरक्षित देखभाल सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। - अभियोक्ता X बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य

Shivam Y.
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने 15 वर्षीय बलात्कार पीड़िता का गर्भपात कराने से इनकार किया, बाल कल्याण समिति को प्रसव के बाद बच्ची की देखभाल करने का निर्देश दिया

जबलपुर स्थित मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर 2025 को एक बेहद संवेदनशील मामले में 15 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता के गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की एकल पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि चिकित्सकीय रिपोर्ट और पीड़िता की इच्छा-दोनों ही इस निर्णय के केंद्र में हैं।

यह मामला रिट याचिका संख्या 40010/2025 के रूप में दर्ज हुआ था, जिसे एक पत्र के आधार पर सुओ मोटो याचिका में परिवर्तित किया गया था। पत्र में एक नाबालिग पीड़िता के गर्भपात से जुड़ी तत्काल चिकित्सा और कानूनी चिंता व्यक्त की गई थी।

पृष्ठभूमि

पीड़िता की उम्र लगभग 15 वर्ष बताई गई है। उसके साथ कथित रूप से सतना जिले में दुष्कर्म हुआ था, जिसके बाद पुलिस थाना रामनगर में बीएनएस, पॉक्सो एक्ट और एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज किया गया।

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जांच के दौरान यह सामने आया कि पीड़िता गर्भवती है। राज्य की ओर से 8 अक्टूबर 2025 को प्रस्तुत मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में यह कहा गया कि पीड़िता का गर्भ 36 सप्ताह का है, जिससे अब गर्भपात चिकित्सकीय रूप से असुरक्षित है।

रिपोर्ट में बताया गया कि पीड़िता का हीमोग्लोबिन स्तर मात्र 7.3 ग्राम और प्लेटलेट काउंट सामान्य से काफी कम है, जिससे गर्भपात के दौरान उसकी जान को गंभीर खतरा हो सकता है।

रिपोर्ट में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया-

“गर्भपात कराना उचित नहीं होगा, क्योंकि इससे पीड़िता और गर्भस्थ शिशु दोनों के जीवन पर बुरा असर पड़ सकता है।”

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने पीड़िता और उसके पिता के बयान पढ़े, जिन्हें बाल कल्याण समिति (CWC) ने परामर्श सत्र के दौरान दर्ज किया था।

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पीड़िता ने कहा-

“मैं गर्भपात नहीं कराना चाहती, क्योंकि डॉक्टरों ने बताया कि ऐसा करने से जान का खतरा है।”

उसके पिता ने भी कहा-

“मैं अपनी बेटी का गर्भपात नहीं कराना चाहता, बच्चा जन्म ले लेगा, पर हम उसे नहीं रख पाएंगे।”

न्यायालय ने इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले A (Mother of X) बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024) 6 SCC 327 का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि महिला की प्रजनन स्वतंत्रता और निर्णय का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।

बेंच ने कहा-

“गर्भवती व्यक्ति की सहमति सर्वोपरि है। राज्य सहित कोई भी संस्था उसकी इच्छा का स्थान नहीं ले सकती।”

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निर्णय

सभी तथ्यों और रिपोर्टों पर विचार करने के बाद हाईकोर्ट ने कहा कि इस अवस्था में गर्भपात न तो अनुमेय है, न ही व्यावहारिक, क्योंकि गर्भ लगभग नौ माह का है और चिकित्सकीय रूप से इसका समापन जानलेवा हो सकता है।

न्यायालय ने आदेश दिया कि बाल कल्याण समिति, सतना (CWC Satna) बच्चे के जन्म के 15 दिन बाद उसकी अभिरक्षा (custody) ले ले। तब तक बच्चा अपनी माँ के साथ रहेगा। बाद में समिति बच्चे को गोद देने या राज्य सरकार को सौंपने के लिए स्वतंत्र होगी।

अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि राज्य सरकार पीड़िता और उसके परिवार की पहचान को गुप्त रखे, ताकि किसी भी रूप में उसकी जानकारी सार्वजनिक न हो।

न्यायमूर्ति मिश्रा ने आदेश में लिखा-

“यह निर्देश केवल बच्चे के हित में दिए जा रहे हैं, ताकि उसका पालन-पोषण सुरक्षित वातावरण में हो सके।"

इस टिप्पणी के साथ याचिका निस्तारित कर दी गई।

Case Title: Prosecutrix X vs. The State of Madhya Pradesh and Others

Case Number: Writ Petition No. 40010 of 2025

Date of Judgment: 9th October, 2025

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