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दिल्ली उच्च न्यायालय ने शर्मा ट्रेडिंग जीएसटी मामले में मुनाफाखोरी की राशि उपभोक्ता कल्याण कोष में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया

दिल्ली उच्च न्यायालय ने शर्मा ट्रेडिंग के खिलाफ मुनाफाखोरी विरोधी आदेश को बरकरार रखा, उपभोक्ता कल्याण कोष में 5.55 लाख रुपये देने का निर्देश दिया, पैकेजिंग आधारित बचाव को खारिज कर दिया। - शर्मा ट्रेडिंग कंपनी बनाम भारत संघ एवं अन्य।

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने शर्मा ट्रेडिंग जीएसटी मामले में मुनाफाखोरी की राशि उपभोक्ता कल्याण कोष में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया

दिल्ली हाईकोर्ट ने हिंदुस्तान यूनिलीवर उत्पादों के वितरक शर्मा ट्रेडिंग कंपनी को जीएसटी दरें घटने के बाद भी मुनाफाखोरी करने के आरोप में किसी भी प्रकार की राहत देने से इंकार कर दिया। न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति शैल जैन की पीठ ने 23 सितंबर 2025 को आदेश सुनाते हुए स्पष्ट किया कि कारोबारी पैकेजिंग बदलने या प्रमोशनल स्कीम का हवाला देकर उपभोक्ताओं के अधिकारों को दरकिनार नहीं कर सकते।

पृष्ठभूमि

यह विवाद 2017 से जुड़ा है, जब वैसलीन वीटीएम 400 एमएल पर जीएसटी 28% से घटाकर 18% कर दिया गया था। सरकारी अधिसूचना के बाद जीएसटी कानून की धारा 171 के तहत सभी विक्रेताओं को अनिवार्य किया गया था कि वे कीमत घटाकर यह लाभ सीधे उपभोक्ताओं तक पहुँचाएँ।

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राष्ट्रीय एंटी-प्रॉफिटियरिंग प्राधिकरण (NAPA) तक शिकायत पहुँची कि शर्मा ट्रेडिंग ने टैक्स लाभ उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँचाया। बल्कि, उन्होंने आधार मूल्य (बेस प्राइस) बढ़ा दिया और अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) ₹213 पर ही रखा।

NAPA की विस्तृत जांच में पाया गया कि शर्मा ट्रेडिंग ने करीब ₹5.5 लाख की मुनाफाखोरी की। यह राशि 18% ब्याज सहित उपभोक्ता कल्याण कोष में जमा करने का आदेश दिया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता ने दलील दी कि वैसलीन बोतलों की मात्रा बढ़ा दी गई थी, इसलिए कीमत बढ़ाना जायज़ था। वकील ने प्रमोशनल स्कीम का भी हवाला दिया, जैसे कि उत्पाद के साथ डव साबुन मुफ्त दिया जा रहा था।

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पीठ इस दलील से असहमत रही। अदालत ने कहा,

“टैक्स कटौती का लाभ उपभोक्ता तक सीधे पहुँचना चाहिए।” जजों ने आगे कहा कि बिना कीमत घटाए उत्पाद की मात्रा बढ़ा देना “सिर्फ छलावा है।”

न्यायालय ने अपने पहले के फैसले रेकिट बेंकाइज़र बनाम भारत संघ का भी ज़िक्र किया और कहा कि एंटी-प्रॉफिटियरिंग कानून एक पूर्ण व्यवस्था है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि उपभोक्ता को वास्तविक मूल्य कटौती का लाभ मिले, न कि परोक्ष रूप से मुफ्त सामान या अतिरिक्त मात्रा देकर।

याचिकाकर्ता की दलील खारिज करते हुए अदालत ने टिप्पणी की:

“जीएसटी दरों में कटौती का उद्देश्य वस्तुओं को सस्ता करना है। इस उद्देश्य को पैकेजिंग या बंडलिंग की चालों से नकारा नहीं जा सकता।”

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पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) से कम कीमत पर बेचना पूरी तरह अनुमेय है, लेकिन कीमत न घटाकर MRP को ढाल बनाना स्वीकार्य नहीं है।

निर्णय

सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, दिल्ली हाईकोर्ट ने NAPA के मूल आदेश को बरकरार रखा। अदालत ने निर्देश दिया कि ₹5,55,126 की मुनाफाखोरी की राशि, जिसे पहले अदालत के आदेश पर सावधि जमा (FDR) में रखा गया था, अब उपभोक्ता कल्याण कोष में स्थानांतरित की जाए।

जहाँ तक पेनाल्टी (जुर्माना) का सवाल है, अदालत ने माना कि बाद के कानूनी बदलावों के चलते पुराने मामलों में पेनाल्टी की कार्यवाही लागू नहीं होती। इस तरह केवल मूल मुनाफाखोरी की राशि और उस पर ब्याज ही कल्याण कोष में जाएगी।

इन निर्देशों के साथ शर्मा ट्रेडिंग द्वारा दायर रिट याचिका का निपटारा कर दिया गया।

Case Title: Sharma Trading Company v. Union of India & Ors.

Case Number: W.P.(C) 13194/2018

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