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कर्नाटक हाईकोर्ट ने काट दी उम्रकैद की सजा: सनसनीखेज हत्या मामले में सबूतों की कड़ी टूटी

कर्नाटक हाईकोर्ट ने 2014 हत्या मामले में पति को बरी किया, कहा-परिस्थितिजन्य सबूत कमजोर, उम्रकैद की सजा टिक नहीं सकती।

Vivek G.
कर्नाटक हाईकोर्ट ने काट दी उम्रकैद की सजा: सनसनीखेज हत्या मामले में सबूतों की कड़ी टूटी

बेंगलुरु हाईकोर्ट की खचाखच भरी अदालत में बुधवार को जैसे ही फैसला पढ़ा गया, एक लंबा सन्नाटा छा गया। साल 2014 के एक दिल दहला देने वाले हत्या मामले में दोषी ठहराए गए पति को आखिरकार राहत मिल गई। कर्नाटक हाईकोर्ट ने साफ कहा कि शक चाहे जितना भी गहरा हो, वह सबूत की जगह नहीं ले सकता।

डिवीजन बेंच, जिसमें जस्टिस के.एस. मुदगल और जस्टिस वेंकटेश नाइक टी शामिल थे, ने निचली अदालत का फैसला पलटते हुए आरोपी अरुण कुमार एम. को बरी कर दिया।

Background

मामला दिसंबर 2014 का है। बगलुरु इलाके में एक खेत के पास एक महिला का बुरी तरह क्षत-विक्षत शव मिला था। चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था, हाथ-पैर कटे हुए थे और गले पर गहरे घाव थे। पुलिस जांच में दावा किया गया कि शव अरुण कुमार की पत्नी रम्या का है।

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अभियोजन की कहानी लंबी और उलझी हुई थी-शादी के बाद तनाव, कथित प्रेम संबंध, घरेलू झगड़े और फिर हत्या की साजिश। सत्र अदालत ने मार्च 2024 में अरुण कुमार को हत्या, सबूत मिटाने और पत्नी के साथ क्रूरता के आरोपों में उम्रकैद की सजा सुनाई थी। उसी फैसले को चुनौती देते हुए आरोपी हाईकोर्ट पहुंचा।

Court’s Observations

फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने एक-एक कड़ी को परखा। अदालत ने सबसे पहले यह रेखांकित किया कि पूरे मामले में कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं है। “यह पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर आधारित मामला है,” बेंच ने कहा।

अदालत ने तथाकथित “आखिरी बार साथ देखे जाने” (लास्ट सीन थ्योरी) पर भी सवाल उठाए। अलग-अलग गवाहों ने अलग-अलग समय बताए और कुछ के बयान घटना के महीनों बाद दर्ज हुए। इस देरी का कोई ठोस जवाब नहीं मिला।

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बरामदगी को लेकर भी अदालत संतुष्ट नहीं दिखी। कथित हत्या के हथियार और अन्य सामान की जब्ती में स्वतंत्र गवाहों का समर्थन नहीं मिला। बेंच ने टिप्पणी की, “बिना पुख्ता पुष्टि के केवल पुलिस गवाहों के आधार पर बरामदगी मान लेना सुरक्षित नहीं है।”

शव की पहचान भी एक बड़ा सवाल बनी रही। मृतका की मां ने टैटू के आधार पर पहचान की, लेकिन डीएनए जांच नहीं कराई गई। अदालत ने माना कि इस तरह के गंभीर मामले में वैज्ञानिक पुष्टि जरूरी थी।

Decision

अंत में अदालत ने साफ शब्दों में कहा, “परिस्थितिजन्य साक्ष्य की कड़ी में कई जगह टूट है। ऐसे में दोषसिद्धि टिक नहीं सकती।” बेंच ने आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए निचली अदालत का फैसला रद्द कर दिया।

हाईकोर्ट ने अरुण कुमार एम. को सभी आरोपों से बरी करते हुए तत्काल रिहा करने का आदेश दिया, बशर्ते वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो। जमा किया गया जुर्माना लौटाने का भी निर्देश दिया गया। इसके साथ ही अदालत ने पीड़िता की मां को मुआवजे के निर्धारण के लिए जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को मामला भेज दिया।

Case Title: Arun Kumar M. vs State by Bagaluru Police

Case No.: Criminal Appeal No. 1270 of 2024

Case Type: Criminal Appeal (against conviction under IPC Sections 302, 201, 498A)

Decision Date: 18 December 2025

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