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पटना हाईकोर्ट ने तरनी मंडल को बरी किया, 2014 भागलपुर पुलिस मुठभेड़ हत्या दोषसिद्धि रद्द

तरनी मंडल बनाम बिहार राज्य - पटना हाईकोर्ट ने 2014 भागलपुर पुलिस फायरिंग केस में तरनी मंडल को बरी किया, गवाहों की गवाही में विरोधाभास पर दोषसिद्धि रद्द।

Abhijeet Singh
पटना हाईकोर्ट ने तरनी मंडल को बरी किया, 2014 भागलपुर पुलिस मुठभेड़ हत्या दोषसिद्धि रद्द

पटना, 18 सितम्बर: लगभग एक दशक लंबे कानूनी संघर्ष के बाद पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को शाहकुंड फायरिंग मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे तरनी मंडल को बरी कर दिया। इस घटना में 2014 में सब- इंस्पेक्टर अविनाश कुमार की मौत हो गई थी। जस्टिस बिबेक चौधरी और जस्टिस डॉ. अंशुमन की खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया, जिससे 65 वर्षीय अपीलकर्ता को बड़ी राहत मिली।

पृष्ठभूमि

23 जून 2014 की शाम, भागलपुर जिले के पंचरुखी बाजार के पास पुलिस गश्ती दल और हथियारबंद अपराधियों के बीच मुठभेड़ हुई थी। इस दौरान एसआई अविनाश कुमार को गोली लगी और उनकी मौत हो गई। इसी दौरान खुर्ली गांव के बुजुर्ग निवासी तरनी मंडल को मौके से पकड़ लिया गया, जबकि बाकी आरोपी भाग निकले।

2016 में सत्र न्यायालय ने उन्हें हत्या (धारा 302 आईपीसी), सरकारी सेवक पर हमला और एससी/एसटी एक्ट की धाराओं में दोषी ठहराकर उम्रकैद और जुर्माने की सजा सुनाई थी। सह- आरोपी संजय यादव और सिंतु यादव सबूतों के अभाव में बरी कर दिए गए थे।

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न्यायालय की टिप्पणियाँ

अपील के दौरान मंडल के वकीलों का तर्क था कि जब गोलीबारी हुई, तब मंडल पहले ही पुलिस की गिरफ्त में थे और उनके पास कोई हथियार नहीं था। उनके कपड़ों पर खून के दाग केवल घायल अधिकारी के पास होने की वजह से लगे थे, न कि किसी अपराध से।

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खंडपीठ ने गश्ती दल के पाँच प्रत्यक्षदर्शी गवाहों की गवाही पर गौर किया। अधिकांश ने जिरह में माना कि मंडल को घातक गोली लगने से पहले ही पकड़ लिया गया था और उनके पास कोई हथियार नहीं था। एक कांस्टेबल ने स्पष्ट कहा- जिस आदमी को पकड़ा गया, उसके पास हथियार नहीं था।'

एक अन्य गवाह ने कहा-

''हम और साहब ने उसे पकड़ा, और उसी समय साहब को गोली लगी।''

एससी/एसटी एक्ट के आरोप पर न्यायाधीशों ने पाया कि जातिगत गालियाँ बाकी फरार अपराधियों ने दी थीं, न कि मंडल ने। शस्त्र अधिनियम का आरोप भी निराधार निकला क्योंकि उनके पास से कोई हथियार बरामद नहीं हुआ।

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न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 34 (समान आशय) यहाँ लागू नहीं होती। पीठ ने टिप्पणी की-

''पुलिस दल पर हथियारों का प्रयोग उस समय हुआ जब अपीलकर्ता अपने साथियों से अलग हो चुके थे।''

निर्णय

अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने 2016 का दोषसिद्धि आदेश रद्द कर दिया और मंडल की तत्काल रिहाई का निर्देश दिया, यदि किसी अन्य मामले में उनकी आवश्यकता न हो।

अदालत ने कहा- ''अभियोजन आरोपों को संदेह से परे सिद्ध करने में विफल रहा है।''

न्यायालय ने मृतक अधिकारी की पत्नी की ओर से नियुक्त अमीकस क्यूरी अधिवक्ता सुर्या निलंबरी की सराहना भी दर्ज की और उनकी ''सक्षम सहायता'' का उल्लेख किया।

इस फैसले के साथ शाहकुंड थाना का 11 साल पुराना यह मामला समाप्त हो गया- हालांकि एसआई अविनाश कुमार के परिवार के लिए यह लड़ाई अधूरी ही महसूस होगी

मामले का शीर्षक: तरनी मंडल बनाम बिहार राज्य

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