मेन्यू
समाचार खोजें...
होम

कंपनी के परिसमापन के बावजूद चेक बाउंस अपील में निदेशकों से 20% जमा कराने पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता, NI एक्ट के तहत

भारत मित्तल बनाम राजस्थान राज्य एवं अन्य, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कंपनी के परिसमापन के बावजूद चेक बाउंस अपील में निदेशक से 20% जमा कराया जा सकता है, एनआई एक्ट धारा 148 के तहत।

Vivek G.
कंपनी के परिसमापन के बावजूद चेक बाउंस अपील में निदेशकों से 20% जमा कराने पर सुप्रीम कोर्ट की स्पष्टता, NI एक्ट के तहत

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस मामलों से जुड़े एक व्यावहारिक लेकिन अक्सर उलझाने वाले सवाल पर स्थिति साफ कर दी-क्या किसी कंपनी के निदेशक को, कंपनी के अस्तित्व में न रहने के बावजूद, अपील के दौरान मुआवजे का 20% जमा करने के लिए मजबूर किया जा सकता है। यह फैसला भारत मित्तल बनाम राज्य राजस्थान मामले में आया, जिस पर देशभर में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट के मामलों की पैरवी करने वाले वकीलों की खास नजर थी।

पृष्ठभूमि

यह विवाद स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (सेल) और शिव महिमा इस्पात प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक बड़े स्टील सप्लाई सौदे से शुरू हुआ। वर्ष 2013 में कंपनी ने भुगतान के लिए 4.8 करोड़ रुपये से अधिक का चेक जारी किया, जो “एक्सीड्स अरेंजमेंट” टिप्पणी के साथ बाउंस हो गया।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की वैज्ञानिक परिभाषा तय की, विशेषज्ञ मंजूरी तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में नई खनन लीज पर रोक

इसके बाद नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत शिकायत दर्ज की गई। शुरुआती दौर में कई निदेशकों को मामले से बाहर कर दिया गया, लेकिन चेक के हस्ताक्षरकर्ता और निदेशक भारत मित्तल के खिलाफ मुकदमा चलता रहा।

इसी दौरान राजस्थान हाईकोर्ट ने कंपनी को परिसमापन (वाइंड-अप) का आदेश दे दिया, जिसके चलते भारत मित्तल ही एकमात्र अभियुक्त बचे। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें दोषी ठहराते हुए दो साल की सजा और 8.10 करोड़ रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया।

जब मित्तल ने अपील दायर की, तो अपीलीय अदालत ने सजा निलंबित करते हुए नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 148 के तहत मुआवजे की 20% राशि जमा करने की शर्त रखी। राशि जमा न करने पर आगे की कठोर कार्यवाही शुरू हुई, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश पलटे, कहा-पुलिस ड्राइवर भर्ती में एक्सपायर्ड ड्राइविंग लाइसेंस से पात्रता टूटती है

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि चेक बाउंस के मामले देश में आपराधिक मुकदमों का बड़ा हिस्सा हैं और जमा राशि से जुड़े नियमों पर स्पष्टता बेहद जरूरी है।

अदालत ने समझाया कि सामान्यतः कंपनी और उसके निदेशकों पर एक साथ मुकदमा चलता है। लेकिन यदि कंपनी किसी “कानूनी अड़चन” जैसे परिसमापन या दिवालियापन के कारण अभियोजन का सामना नहीं कर सकती, तो निदेशक के खिलाफ अकेले कार्यवाही जारी रह सकती है।

धारा 148 के संदर्भ में पीठ ने दोहराया कि अपीलीय अदालतें सामान्य रूप से 20% जमा कराने के लिए बाध्य हैं। हालांकि, यह नियम पूरी तरह कठोर नहीं है। पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा, “अपील अदालत के पास जमा से छूट देने का सीमित विवेकाधिकार है, लेकिन केवल असाधारण परिस्थितियों में, और उसके कारण स्पष्ट रूप से दर्ज किए जाने चाहिए।”

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने कार्बोरंडम यूनिवर्सल पर ESI की मांग रद्द की, कहा- रिकॉर्ड पेश होने पर धारा 45A सही प्रक्रिया का विकल्प नहीं बन सकती

अदालत ने यह भी अंतर स्पष्ट किया कि केवल अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता होना और कंपनी के कामकाज में सक्रिय भूमिका निभाना, दोनों अलग स्थितियाँ हैं। “ड्रॉअर” शब्द को यांत्रिक तरीके से नहीं पढ़ा जा सकता। केवल यह तथ्य कि कंपनी का परिसमापन हो चुका है, हर मामले को अपने आप में असाधारण नहीं बना देता।

निर्णय

इन सिद्धांतों को लागू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 सहपठित धारा 141 के तहत दोषी ठहराए गए किसी निदेशक से अपील के दौरान मुआवजे की 20% राशि जमा कराने का निर्देश दिया जा सकता है, भले ही कंपनी परिसमापन के कारण अभियोजन का सामना न कर सकी हो।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश पलटे, कहा-पुलिस ड्राइवर भर्ती में एक्सपायर्ड ड्राइविंग लाइसेंस से पात्रता टूटती है

अदालत ने स्पष्ट किया कि जमा से छूट कोई स्वाभाविक अधिकार नहीं है और यह पूरी तरह मामले की असाधारण परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। चूंकि अपीलीय अदालत और हाईकोर्ट ने अभियुक्त की भूमिका और आचरण की जांच की थी, इसलिए किसी प्रकार की सामान्य राहत नहीं दी जा सकती। परिणामस्वरूप, जमा शर्त को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी गई और इस स्तर पर अपील समाप्त हो गई।

Case Title: Bharat Mittal v. State of Rajasthan & Others

Case No.: Criminal Appeal of 2025 (arising out of SLP (Crl.) No. 12327 of 2025)

Case Type: Criminal Appeal (Negotiable Instruments Act – Cheque Dishonour)

Decision Date: 2025

📄 Download Full Court Order
Official judgment document (PDF)
Download

More Stories