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सुप्रीम कोर्ट ने 24 साल पुरानी शिलांग शादी को समाप्त किया, संबंध केवल कागज़ों पर रहने की बात कहकर 'पूर्ण न्याय' की शक्ति का इस्तेमाल

नयन भौमिक बनाम अपर्णा चक्रवर्ती, सुप्रीम कोर्ट ने 24 साल पुरानी शिलांग शादी को अपूरणीय टूटन के आधार पर खत्म किया, अनुच्छेद 142 का उपयोग कर केवल कागज़ों पर बचे रिश्ते को समाप्त किया।

Vivek G.
सुप्रीम कोर्ट ने 24 साल पुरानी शिलांग शादी को समाप्त किया, संबंध केवल कागज़ों पर रहने की बात कहकर 'पूर्ण न्याय' की शक्ति का इस्तेमाल

अदालत कक्ष में सन्नाटा था, लेकिन माहौल तनावपूर्ण। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे विवाह पर अंतिम विराम लगाया, जो उसके अपने आकलन में वर्षों पहले ही समाप्त हो चुका था। न्यायमूर्ति मनमोहन की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि दंपती को कानूनी रूप से बांधे रखना किसी काम का नहीं है, क्योंकि यह रिश्ता काफी समय से अपना अर्थ और गर्माहट खो चुका है।

पृष्ठभूमि

मामला एक ऐसे दंपती से जुड़ा था जिनकी शादी अगस्त 2000 में शिलांग में हुई थी। दोनों भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) में विकास अधिकारी थे और विवाह से पहले से एक-दूसरे को जानते थे। परेशानी जल्दी शुरू हो गई। 2001 के अंत तक पत्नी ने यह कहते हुए वैवाहिक घर छोड़ दिया कि उस पर नौकरी छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा था, जबकि वह अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हट सकती थी।

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पति ने 2003 में तलाक के लिए अदालत का रुख किया, लेकिन वह याचिका समय से पहले होने के कारण खारिज हो गई। बाद में 2010 में ट्रायल कोर्ट ने परित्याग के आधार पर तलाक दे दिया। हालांकि, गुवाहाटी हाईकोर्ट ने उस फैसले को पलटते हुए कहा कि पत्नी ने विवाह को स्थायी रूप से नहीं छोड़ा था और वह लौटने को तैयार थी। यही खींचतान आखिरकार सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची।

अदालत की टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने विवाद को व्यापक दृष्टि से देखा और केवल दोष तय करने तक खुद को सीमित नहीं रखा। पीठ ने इस तथ्य पर जोर दिया कि दोनों पक्ष पिछले 24 वर्षों से अलग रह रहे थे, कोई संतान नहीं थी और एक ही संस्था में काम करने के बावजूद आपसी संपर्क लगभग खत्म हो चुका था।

पीठ ने टिप्पणी की, “स्वीकार्य स्थिति यह है कि यह विवाह केवल कागज़ों पर ही बचा हुआ है,” और आगे कहा कि लंबे समय तक अलगाव, जब सुलह की कोई उम्मीद न हो, दोनों पक्षों के लिए क्रूरता के समान है। न्यायाधीशों ने साफ किया कि यह अदालत का काम नहीं है कि वह तय करे कि वैवाहिक जीवन को लेकर किसका नजरिया सही है। अहम बात यह है कि दोनों ने दशकों तक एक-दूसरे को स्वीकार करने से इनकार किया।

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पहले के फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि एक अव्यवहारिक विवाह दुख का स्रोत बन जाता है। ऐसे कानूनी बंधन को बनाए रखना विवाह की पवित्रता नहीं बचाता, बल्कि मानसिक पीड़ा को ही बढ़ाता है।

फैसला

संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत “पूर्ण न्याय” करने की अपनी विशेष शक्ति का उपयोग करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने विवाह को अपूरणीय रूप से टूट चुका मानते हुए समाप्त कर दिया। अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा दिए गए तलाक के आदेश को बरकरार रखा और हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए पति की अपील स्वीकार कर ली, जिससे वैवाहिक संबंध औपचारिक रूप से खत्म हो गया।

Case Title: Nayan Bhowmick vs. Aparna Chakraborty

Case No.: Civil Appeal No. 5167 of 2012

Case Type: Matrimonial Dispute – Divorce under Hindu Marriage Act

Decision Date: December 15, 2025

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