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सुपरनोवा प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा हस्तक्षेप: बैंकों की प्राथमिकता पर सवाल, खरीदारों के हक में सख्त आदेश

राम किशोर अरोड़ा बनाम बैंक ऑफ महाराष्ट्र और अन्य, सुप्रीम कोर्ट ने सुपरनोवा प्रोजेक्ट में दखल देकर दिवाला प्रक्रिया बदली, बैंकों पर रोक और घर खरीदारों को बड़ी राहत दी।

Vivek G.
सुपरनोवा प्रोजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा हस्तक्षेप: बैंकों की प्राथमिकता पर सवाल, खरीदारों के हक में सख्त आदेश

सोमवार की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट का माहौल कुछ अलग ही था। अदालत में मौजूद वकीलों की लंबी कतार और हस्तक्षेप की अर्ज़ियों से साफ था कि मामला साधारण नहीं है। नोएडा के सुपरनोवा प्रोजेक्ट से जुड़े इस विवाद में कोर्ट ने आखिरकार वह कदम उठा लिया, जिसकी उम्मीद घर खरीदार लंबे समय से कर रहे थे। सुनवाई के अंत तक यह स्पष्ट हो गया कि शीर्ष अदालत अब इस प्रोजेक्ट को यूँ ही भटकने नहीं देगी।

पृष्ठभूमि

यह मामला सुपरटेक रियल्टर्स प्राइवेट लिमिटेड के बहुचर्चित ‘सुपरनोवा’ प्रोजेक्ट से जुड़ा है, जो नोएडा के सेक्टर 94 में स्थित है। इसमें आवासीय फ्लैट्स के साथ-साथ कमर्शियल स्पेस, ऑफिस, स्टूडियो और शॉपिंग एरिया शामिल हैं। वर्षों से हजारों खरीदार अपने घरों की राह देख रहे हैं।

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बैंक ऑफ महाराष्ट्र द्वारा दिवाला कानून के तहत दायर याचिका पर कंपनी को कॉरपोरेट इन्सॉल्वेंसी प्रक्रिया में डाला गया था। राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) ने भी इस फैसले को बरकरार रखा। इसके खिलाफ कंपनी के निलंबित निदेशक राम किशोर अरोड़ा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

मामले में बैंकों, घर खरीदारों, नोएडा अथॉरिटी और अन्य पक्षकारों के हित जुड़े होने के कारण कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव जैन को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया था, ताकि एक व्यावहारिक समाधान सुझाया जा सके।

कोर्ट की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान पीठ ने साफ कहा कि मामला केवल कर्ज वसूली का नहीं है। अदालत ने एमिकस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि वित्तीय संस्थानों की भूमिका भी सवालों से परे नहीं है।

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पीठ ने टिप्पणी की, “रिकॉर्ड से संकेत मिलता है कि वित्तीय संकट के शुरुआती संकेतों के बावजूद बैंकों ने समय रहते हस्तक्षेप नहीं किया।” कोर्ट के अनुसार, ऐसी निष्क्रियता ने हालात को और बिगाड़ा और इसी पृष्ठभूमि में अब बैंकों द्वारा प्राथमिकता का दावा कमजोर पड़ता है।

अदालत ने यह भी नोट किया कि अधिकांश हितधारक, भले ही उनके दावे अलग-अलग हों, कोर्ट की निगरानी में समाधान चाहते हैं। पीठ ने कहा कि सामान्य दिवाला प्रक्रिया इस मामले की जटिलता को संभालने में नाकाफी साबित हुई है।

फैसला

इन विशेष परिस्थितियों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल किया। कोर्ट ने अंतरिम समाधान पेशेवर, लेनदारों की समिति और निलंबित निदेशक मंडल - तीनों को भंग कर दिया।

इसके स्थान पर अदालत ने एक सशक्त, कोर्ट-नियुक्त समिति गठित की, जिसकी अध्यक्षता जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एम.एम. कुमार करेंगे। इस समिति को कंपनी के बोर्ड की तरह सभी निर्णय लेने का अधिकार दिया गया है। समिति नया डेवलपर चुनेगी, निर्माण की निगरानी करेगी और परियोजना को पूरा कराने की जिम्मेदारी संभालेगी।

सबसे अहम आदेश यह रहा कि बैंकों और नोएडा अथॉरिटी के लिए एक “ज़ीरो पीरियड” लागू किया गया है। यानी जब तक घर खरीदारों को फ्लैट सौंप नहीं दिए जाते, तब तक न तो बैंकों को भुगतान होगा और न ही प्राधिकरण को। इस दौरान खरीदारों के खिलाफ कोई दबाव वाली कार्रवाई भी नहीं की जा सकेगी।

कोर्ट ने सभी फंड्स को केवल निर्माण के लिए एस्क्रो खाते में रखने, फॉरेंसिक ऑडिट कराने और प्रोजेक्ट को प्राथमिकता के आधार पर पूरा करने के निर्देश दिए। मामला अब आगे की निगरानी के लिए जनवरी 2026 में फिर सूचीबद्ध किया गया है।

Case Title: Ram Kishore Arora vs Bank of Maharashtra & Others

Case No.: Civil Appeal No. 11052 of 2025

Case Type: Civil Appeal (Insolvency and Bankruptcy Code – Corporate Insolvency Resolution Process)

Decision Date: 16 December 2025

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