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दिल्ली हाई कोर्ट ने चेक बाउंस मामले में पूर्व डायरेक्टर को राहत देने से इनकार किया, कहा- “विवादित इस्तीफे पर ट्रायल ज़रूरी”

दिनेश कुमार पांडे बनाम मेसर्स सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड और अन्य - दिल्ली उच्च न्यायालय ने पूर्व निदेशक दिनेश पांडे के खिलाफ चेक बाउंस मामलों को रद्द करने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि विवादित इस्तीफे के समय की जांच मुकदमे के दौरान की जानी चाहिए।

Shivam Y.
दिल्ली हाई कोर्ट ने चेक बाउंस मामले में पूर्व डायरेक्टर को राहत देने से इनकार किया, कहा- “विवादित इस्तीफे पर ट्रायल ज़रूरी”

नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2025: दिल्ली हाई कोर्ट में बुधवार को हुई सुनवाई में ऐसी स्थिति बनी जैसे कोई कारोबारी विवाद अपने सबसे महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँचा हो। अदालत के सामने आरोपी दिनेेश कुमार पांडेय ने दलील दी कि उन्होंने चेक dishonour होने से काफी पहले बोर्ड से इस्तीफा दे दिया था, इसलिए उन पर मामला चलाना गलत है। लेकिन न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने यह तर्क फिलहाल मानने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने साफ कहा अभी नहीं, पहले ट्रायल।

पृष्ठभूमि

मामला उन लोन सुविधाओं से जुड़ा है जो दो कंपनियों–

  • South Centre of Academy Pvt. Ltd.
  • Sampoorn Academy Pvt. Ltd.

को M/s Singh Finlease Pvt. Ltd. (एक NBFC) द्वारा दी गई थीं। EMI चुकाने के लिए जारी किए गए चेक जब “funds insufficient” के कारण लौट आए, तो कंपनी ने धारा 138 NI Act (चेक बाउंस) और धारा 141 (कंपनी के अधिकारियों की आपराधिक जवाबदेही) के तहत मामला दर्ज कराया।

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पांडेय का कहना था कि चेक के dishonour होने से पहले ही उनका इस्तीफा दर्ज हो चुका था, इसलिए उन्हें आरोपी बनाना ही बेबुनियाद है।

अदालत की टिप्पणियाँ

सुनवाई के दौरान अदालत ने तारीखों पर खास ध्यान दिया–

  • लोन डिफ़ॉल्ट 2023 में शुरू हुए
  • चेक मार्च 2024 के थे
  • और इस्तीफे इसी अवधि के आसपास दर्ज किए गए

यानी घटनाक्रम में साफ़ ओवरलैप दिख रहा था।

अदालत ने कहा, “इस स्तर पर याचिका स्वीकार करने के लिए रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्य निर्विवाद और साफ होने चाहिए, जबकि यहाँ विवाद स्पष्ट रूप से मौजूद है।”

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कोर्ट ने तीन मुख्य बिंदु अहम माने:

  • पांडेय ने चेक पर दस्तख़त स्वीकार किए हैं
  • इस्तीफे के समय और उद्देश्य पर विवाद है
  • शिकायतकर्ता का आरोप है कि वे बैकग्राउंड से प्रबंधन नियंत्रित करते रहे

एक और टिप्पणी साफ संकेत दे गई:

“प्रोसीडिंग को शुरू में ही रोकना केवल उन्हीं मामलों में संभव है जहाँ निर्विवाद सामग्री आरोपी के पक्ष में हो, यहाँ वैसा नहीं है।

सरल भाषा में: “बचाव की गुंजाइश है, पर ट्रायल से पहले छुटकारा नहीं।”

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फैसला

अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया और स्पष्ट कहा कि पांडेय ट्रायल के दौरान सबूत पेश कर सकते हैं। चाहे यह दिखाने के लिए कि:

  • इस्तीफा वास्तव में प्रभावी था,
  • साइन किए गए चेक का उपयोग गलत तरीके से हुआ,
  • या उस समय वे कंपनी के संचालन से अलग हो चुके थे।

लेकिन फिलहाल, मामला चलेगा।

आदेश का निष्कर्ष: पिटीशन और लंबित आवेदन खारिज; ट्रायल कोर्ट कानून के अनुसार आगे बढ़ेगा।

और बस, यहीं पर कोर्टरूम की बहस खत्म - पर मुकदमा नहीं।

Case Details:

Case Title: Dinesh Kumar Pandey v. M/s Singh Finlease Pvt. Ltd. & Anr. (and connected matters)

Case Number: CRL.M.C. 8175/2025, 8176/2025, 8177/2025 & 8178/2025

Counsel for Petitioner: Mr. Sumit Chauhan, Mr. Sushant Kumar, Advocates.

Counsel for Respondents: Mr. Virat K. Anand, Mr. Kumar Shashank, Mr. Harish Nadda, Mr. Vikalp Singh, Ms. Srishty Kaul, Ms. Swati Kwatra, Advocates.

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