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सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के तबादले से गुजरात के वकीलों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू, जस्टिस भट के तबादले का विरोध

न्यायमूर्ति भट्ट के प्रस्तावित तबादले का विरोध करते हुए गुजरात हाईकोर्ट वकीलों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू की, सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार की अपील।

Shivam Y.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के तबादले से गुजरात के वकीलों की अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू, जस्टिस भट के तबादले का विरोध

गुजरात हाईकोर्ट अधिवक्ता संघ (GHCAA) ने न्यायमूर्ति संदीप एन. भट्ट के मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में प्रस्तावित तबादले का विरोध करते हुए अनिश्चितकालीन हड़ताल शुरू कर दी है। यह कदम उस समय उठाया गया जब खबर आई कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम देशभर के 14 हाईकोर्ट न्यायाधीशों के तबादले पर विचार कर रहा है, जिसमें न्यायमूर्ति भट्ट का नाम भी शामिल है।

अहमदाबाद में खबर सामने आने के तुरंत बाद एक आपात आमसभा बुलाई गई। बैठक के दौरान वकीलों ने इस प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति जताई और अनिश्चितकाल तक न्यायिक कार्य से दूर रहने का सामूहिक निर्णय लिया। इस फैसले के चलते कई मामलों की सुनवाई स्थगित करनी पड़ी है और आने वाले दिनों में न्यायिक कामकाज में और बाधा पड़ने की संभावना है।

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सुप्रीम कोर्ट से प्रत्यक्ष अपील

अपने प्रस्ताव के हिस्से के रूप में GHCAA ने एक वरिष्ठ प्रतिनिधिमंडल को नई दिल्ली भेजने का निर्णय लिया है ताकि मुख्य न्यायाधीश और कॉलेजियम सदस्यों से मुलाकात की जा सके। प्रस्ताव में कहा गया है,

"संघ ने सर्वोच्च न्यायिक प्राधिकरण के समक्ष सीधे अपनी चिंताएं रखने का निर्णय किया है।"

इस प्रतिनिधिमंडल में GHCAA अध्यक्ष बृजेश त्रिवेदी, वरिष्ठ अधिवक्ता मिहिर जोशी और असीम पांड्या, तथा अधिवक्ता हार्दिक ब्रह्मभट्ट और दीपेन दवे शामिल होंगे।

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हालांकि कॉलेजियम की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक आदेश जारी नहीं हुआ है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि,

"केवल कुछ औपचारिकताएं शेष हैं, जिसके बाद तबादले की अनुशंसा केंद्र सरकार को भेजी जाएगी।"

न्यायमूर्ति भट्ट के संभावित तबादले की खबर ने वकीलों में बेचैनी पैदा कर दी है। उनका मानना है कि उनके हटने से कई महत्वपूर्ण मामलों पर असर पड़ सकता है।

यह हड़ताल गुजरात बार से आया एक दुर्लभ और सशक्त संदेश माना जा रहा है, जो कानूनी बिरादरी के असंतोष को दर्शाता है। जब तक सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टता नहीं मिलती, तब तक गुजरात में न्यायिक कार्य प्रभावित रहने की संभावना है, जिससे न्याय वितरण में देरी की आशंका बढ़ गई है।

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