उन्नाव रेप मामले में एक बड़ा मोड़ आया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें पूर्व यूपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की उम्रकैद सज़ा को निलंबित करके ज़मानत देने का निर्देश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि यह मामला गंभीर कानूनी सवाल खड़ा करता है और बिना विचार के रिहाई संभव नहीं।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, जस्टिस जे.के. महेश्वरी और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अवकाश पीठ ने यह आदेश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
सेंगर को 2019 में नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी ठहराते हुए दिल्ली की विशेष CBI अदालत ने आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी। यह सज़ा IPC और POCSO एक्ट की गंभीर धाराओं के तहत दी गई थी, जिसमें आजीवन सज़ा तक का प्रावधान है।
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लेकिन दिसंबर में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि POCSO की धारा 5 के तहत ‘गंभीर दुष्कर्म’ (Aggravated Assault) तभी बनता है, जब आरोपी कानून में परिभाषित ‘पब्लिक सर्वेंट’ हो, और विधायक को इस दायरे में नहीं रखा जा सकता। इसी आधार पर सेंगर को ज़मानत दी गई थी।
CBI ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।
सुप्रीम कोर्ट में आज क्या हुआ
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, CBI की ओर से पेश हुए और दलील दी कि हाई कोर्ट की व्याख्या कानून की सुरक्षा-भावना को कमज़ोर कर सकती है।
उन्होंने कहा:
“एक प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा नाबालिग के खिलाफ यह अपराध हुआ। ऐसे में सार्वजनिक पद या प्रभुत्व का दुरुपयोग ‘गंभीर अपराध’ की श्रेणी में आएगा। परिभाषा ऐसे नहीं बचा सकती।”
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इस पर मुख्य न्यायाधीश ने चिंता जताई:
“यह कैसे संभव है कि एक सिपाही ‘पब्लिक सर्वेंट’ माना जाए, पर एक विधायक नहीं? क्या यह व्याख्या कानून की मंशा के खिलाफ नहीं जाएगी?”
बेंच ने कहा कि POCSO एक बच्चे की सुरक्षा के लिए बना विशेष कानून है, इसलिए इसकी व्याख्या उद्देश्यपूर्ण (Purposive Interpretation) होनी चाहिए, न कि केवल तकनीकी।
‘पब्लिक सर्वेंट’ की परिभाषा पर सवाल
सेंगर के वकीलों ने तर्क दिया कि:
- दंड कानून में परिभाषाएँ सख्त होती हैं
- दूसरी विधि (IPC) की परिभाषा POCSO में सीधे लागू नहीं की जा सकती
- MLA को स्वतः “पब्लिक सर्वेंट” मानना विधायी स्कीम के खिलाफ है
इस पर बेंच ने कहा:
“व्याख्या ऐसी नहीं होनी चाहिए कि प्रभावशाली पद अपराध को कम गंभीर बना दे।”
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पीड़िता की सुरक्षा पर अदालत की चिंता
CBI ने यह भी कहा कि सेंगर का प्रभाव और पीड़िता व परिवार की सुरक्षा को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता। SG मेहता ने कहा:
“यह केवल कानूनी तकनीक का मामला नहीं, बल्कि सुरक्षा और भरोसे का प्रश्न भी है।”
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
अदालत ने हाई कोर्ट का आदेश फिलहाल स्थगित कर दिया और कहा कि:
- सेंगर को इस आदेश के आधार पर रिहा नहीं किया जाएगा
- CBI की याचिका पर नोटिस जारी
- जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का समय
- कानूनी प्रश्नों पर आगे सुनवाई होगी
बेंच ने साफ कहा:
“हम विशेष परिस्थितियों में हाई कोर्ट का आदेश रोकते हैं। अभियुक्त इस आदेश के चलते रिहा नहीं होगा।”










