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हाई कोर्ट ने भरण-पोषण आदेश को बरकरार रखा याचिकाकर्ता द्वारा पत्नी को सहायता देने का प्रस्ताव न दिए जाने के कारण पुनरीक्षण याचिका खारिज

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने 3,000 रुपये मासिक भरण-पोषण के आदेश को चुनौती देने वाली पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, यह मानते हुए कि याचिकाकर्ता का पुनर्मिलन का प्रस्ताव दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125(3) के तहत अपर्याप्त था। कानूनी प्रभाव जानें।

Abhijeet Singh
हाई कोर्ट ने भरण-पोषण आदेश को बरकरार रखा याचिकाकर्ता द्वारा पत्नी को सहायता देने का प्रस्ताव न दिए जाने के कारण पुनरीक्षण याचिका खारिज

एक ताजा निर्णय में, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट, ग्वालियर ने एक पत्नी को 3,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने के परिवार न्यायालय के आदेश को बरकरार रखते हुए पति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया। CRR-6279-2024 मामले में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि भरण-पोषण के दावे का विरोध करने से पहले पति द्वारा औपचारिक रूप से पुनर्मिलन का प्रस्ताव देना कानूनी रूप से आवश्यक है।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता (पति) ने 21 नवंबर, 2024 को विदिशा के परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश द्वारा MJCR No. 13/2023 में पारित आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें याचिकाकर्ता (पत्नी) को भरण-पोषण राशि प्रदान की गई थी। पति ने तर्क दिया कि पत्नी भरण-पोषण की हकदार नहीं है क्योंकि वह उसे अपने साथ रखने को तैयार था। हालांकि, हाई कोर्ट ने इस दावे को कानूनी रूप से अपर्याप्त पाया।

मुख्य सवाल यह था कि क्या पति का उसके जवाब में दिया गया केवल एक बयान-जिसमें पुनर्मिलन की इच्छा व्यक्त की गई थी-दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125(3) के तहत एक वैध प्रस्ताव माना जा सकता है। इस प्रावधान में कहा गया है:

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"यदि ऐसा व्यक्ति अपनी पत्नी को उसके साथ रहने की शर्त पर भरण-पोषण देने का प्रस्ताव करता है, और वह उसके साथ रहने से इनकार कर देती है, तो मजिस्ट्रेट उसके इनकार के आधारों पर विचार कर सकता है और यदि उचित समझे तो भरण-पोषण का आदेश दे सकता है।"

अदालत ने देखा कि याचिकाकर्ता ने कभी भी औपचारिक रूप से पुनर्मिलन के लिए आवेदन नहीं दिया या मुकदमे की कार्यवाही के दौरान पत्नी से इस मुद्दे पर जिरह नहीं की।

अदालत की टिप्पणियाँ

  1. औपचारिक प्रस्ताव की आवश्यकता: न्यायमूर्ति G.S.अहलूवालिया ने जोर देकर कहा कि जवाब में दिया गया अस्पष्ट बयान पर्याप्त नहीं है। पति को चाहिए था कि वह:
    • पत्नी को भरण-पोषण देने का एक विशिष्ट आवेदन दायर करता।
    • पत्नी से उसके इनकार के आधारों पर जिरह करता।
    • मुकदमे के दौरान अपनी इच्छा का सबूत प्रस्तुत करता।
  2. भरण-पोषण राशि उचित: 3,000 रुपये मासिक की राशि को उचित माना गया, और इसमें किसी भी प्रकार की मनमानी का कोई सबूत नहीं था।
  3. पुनरीक्षण याचिका खारिज: अदालत ने याचिका में कोई दम नहीं पाया, क्योंकि याचिकाकर्ता प्रक्रियात्मक और वास्तविक कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने में विफल रहा।

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पाठकों के लिए मुख्य बिंदु

  • कानूनी औपचारिकताएँ महत्वपूर्ण हैं: भरण-पोषण का विरोध करने के लिए पति को औपचारिक रूप से पुनर्मिलन का प्रस्ताव (आवेदन/सबूत के माध्यम से) देना चाहिए।
  • न्यायिक विवेक: अदालतें धारा 125(3) के तहत इनकार के आधारों का मूल्यांकन करने के बाद ही भरण-पोषण को बरकरार रखती हैं।
  • मिसाल का महत्व: यह फैसला दंड प्रक्रिया संहिता के तहत पति-पत्नी के दायित्वों की पूर्व व्याख्याओं के अनुरूप है।

केस संख्या: CRR No. 6279 of 2024

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