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दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी और बच्चे के लिए भरण-पोषण राशि बढ़ाई, कहा आय में असमानता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

दिल्ली हाईकोर्ट ने बधानी मामले में पत्नी और बच्ची के लिए भरण-पोषण बढ़ाया, आय असमानता और न्याय पर जोर दिया।

Vivek G.
दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी और बच्चे के लिए भरण-पोषण राशि बढ़ाई, कहा आय में असमानता को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्मृति शिखा बधानी बनाम श्री हेमंत बधानी मामले में फैमिली कोर्ट के पिछले आदेश को संशोधित करते हुए भरण-पोषण को लेकर अहम फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति रेनू भटनागर की खंडपीठ ने 10 सितंबर 2025 को यह स्पष्ट कर दिया कि अलग रह रहे पति-पत्नी की आर्थिक स्थिति में भारी अंतर को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

पृष्ठभूमि

शिखा बधानी और हेमंत बधानी का विवाह नवंबर 2013 में हुआ था और 2016 में उनकी बेटी पैदा हुई। लेकिन अक्टूबर 2019 से दोनों अलग रह रहे हैं और बच्ची मां के साथ रह रही है। हेमंत, जो अमेरिका में एडोबी सिस्टम्स में सीनियर कंप्यूटर साइंटिस्ट हैं, सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक कमाते हैं, जबकि शिखा दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और लगभग 1.25 लाख रुपये मासिक आय अर्जित करती हैं।

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मार्च 2024 में तिस हजारी फैमिली कोर्ट ने हेमंत को बच्ची की परवरिश के लिए प्रति माह 35,000 रुपये देने और स्कूल का खर्च उठाने का आदेश दिया था। लेकिन अदालत ने शिखा को किसी प्रकार का भरण-पोषण देने से मना कर दिया, यह कहते हुए कि वह शिक्षित और रोजगारशुदा हैं तथा खुद का पालन-पोषण कर सकती हैं। इससे असंतुष्ट होकर शिखा ने अपील दायर की और अपने लिए प्रति माह 3.5 लाख रुपये तथा बच्ची के लिए अधिक राशि की मांग की।

हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की दलील को सख्ती से खारिज कर दिया। पीठ ने कहा, “निर्णायक कसौटी केवल यह नहीं है कि पत्नी नौकरी करती है, बल्कि यह है कि क्या उसकी आय वैसी जीवनशैली बनाए रखने के लिए पर्याप्त है जैसी वह वैवाहिक जीवन में भोग रही थी।”

न्यायाधीशों ने दोनों की आमदनी में साफ अंतर की ओर इशारा किया—हेमंत की कमाई शिखा से लगभग दस गुना ज्यादा है। अदालत ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 का उद्देश्य आय की बराबरी करना नहीं, बल्कि न्याय और सम्मान सुनिश्चित करना है ताकि आर्थिक रूप से कमजोर जीवनसाथी और बच्चा नुकसान में न रहें।

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पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा, “सिर्फ इसलिए कि पत्नी कमाती है, यह स्वचालित रूप से भरण-पोषण रोकने का आधार नहीं बनता।” बल्कि कानून वास्तविक दृष्टिकोण की मांग करता है, न कि ऐसे आदेश जो या तो अत्यधिक कष्टदायक हों या जरूरत से ज्यादा भव्य।

पीठ ने यह भी कहा कि शिखा का अपने माता-पिता पर आश्रित रहना स्थायी समाधान नहीं माना जा सकता। केवल उसकी आय से वह अपनी और अपनी बच्ची की वही जीवनशैली नहीं चला सकती जो विवाह के दौरान थी।

निर्णय

सभी पहलुओं- सामाजिक स्थिति, जीवनशैली, आय में भारी अंतर और बच्ची की ज़रूरतों—को देखते हुए हाईकोर्ट ने मासिक भरण-पोषण राशि 35,000 रुपये से बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये (पत्नी और बच्ची दोनों के लिए सम्मिलित रूप से) कर दी। फैमिली कोर्ट के अन्य निर्देश जस के तस रखे गए।

इस तरह अपील का निपटारा कर दिया गया और शिखा को बड़ी राहत मिली। अदालत ने फिर दोहराया कि भरण-पोषण का मकसद केवल जीवित रहने की व्यवस्था करना नहीं, बल्कि गरिमा और समानता सुनिश्चित करना है।

केस: श्रीमती. शिखा बधानी बनाम श्री हेमन्त बधानी

फैसले की तारीख: 10 सितंबर 2025

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