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CJI BR गवई का कड़ा सवाल: "सस्टेनेबल डेवलपमेंट का मतलब रातों-रात जंगल साफ करना नहीं हो सकता"

सीजेआई बीआर गवई ने कंचा गचिबोवली जंगल की रातों-रात बुलडोज़िंग पर नाराजगी जताई, कहा—सतत विकास के नाम पर जंगल साफ करना उचित नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने वन्यजीव संरक्षण और यथास्थिति बहाली के निर्देश दिए।

Vivek G.
CJI BR गवई का कड़ा सवाल: "सस्टेनेबल डेवलपमेंट का मतलब रातों-रात जंगल साफ करना नहीं हो सकता"

तेलंगाना के कंचा गचिबोवली वन क्षेत्र में जंगल की कटाई को लेकर सुप्रीम कोर्ट में स्वतः संज्ञान (Suo Motu) से चल रही सुनवाई के दौरान भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बीआर गवई ने बुलडोज़र से रातों-रात जंगल साफ करने पर गंभीर टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि वे खुद सस्टेनेबल डेवलपमेंट (सतत विकास) के समर्थक हैं, लेकिन इस तरह की कार्यवाही स्वीकार्य नहीं है।

"मैं खुद सस्टेनेबल डेवलपमेंट का पक्षधर हूं, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आप रातों-रात 30 बुलडोज़र लगाकर पूरा जंगल साफ कर दें," — मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई

यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट की उस सुनवाई के दौरान आई, जिसमें तेलंगाना राज्य में कंचा गचिबोवली क्षेत्र में तेजी से हो रही पेड़ों की कटाई और वन क्षेत्र को साफ करने की शिकायतों को लेकर चिंता जताई गई थी।

वरिष्ठ अधिवक्ता के परमेश्वर, जो इस मामले में एमिकस क्यूरी (Amicus Curiae) के रूप में पेश हुए, ने बताया कि कुछ निजी पक्ष राज्य के हलफनामे पर जवाब दाखिल करना चाहते हैं। इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए मामला 13 अगस्त को सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया।

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इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को सख्त चेतावनी दी थी कि लंबे वीकेंड का फायदा उठाकर बुलडोज़िंग शुरू करना अदालत की अवमानना के दायरे में आ सकता है। कोर्ट ने यहां तक कहा था कि संबंधित अधिकारियों को अवमानना और अस्थायी कारावास का सामना करना पड़ सकता है।

“मौके पर यथास्थिति की बहाली कोर्ट की पहली प्राथमिकता होगी,” — सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने तेलंगाना के वाइल्डलाइफ वार्डन को निर्देश दिया कि वह जंगल की कटाई से प्रभावित वन्यजीवों की रक्षा के लिए तुरंत कदम उठाएं। इसके अलावा, कोर्ट ने CEC (सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी) द्वारा किए गए निरीक्षण पर राज्य से जवाब दाखिल करने के लिए समय भी दिया।

पृष्ठभूमि:

यह मामला तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन (TSIIC) द्वारा जारी एक सरकारी आदेश से जुड़ा है, जिसके तहत कंचा गचिबोवली वन क्षेत्र की 400 एकड़ हरित भूमि को आईटी इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए हस्तांतरित करने की योजना थी।

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हाल ही में इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू हुई, जिसके खिलाफ जनता और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। 2 अप्रैल को तेलंगाना हाईकोर्ट ने इस भूमि पर पेड़ों की कटाई पर 3 अप्रैल तक रोक लगाई, और फिर 7 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई की जानकारी मिलने पर 24 अप्रैल तक कार्यवाही स्थगित कर दी।

दावों के अनुसार, TSIIC ने यह भूमि 2012 में अधिग्रहित की थी और 2024 में आदेश जारी कर आईटी क्षेत्र के लिए इसे उपयोग में लाने की योजना बनाई। इसके तहत भारी मशीनों से बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई शुरू की गई, जिसके चलते हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं (PIL) दायर की गईं।

याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्य सरकार की यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के दो प्रमुख निर्णयों का उल्लंघन है:

  1. टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाड बनाम भारत संघ
  2. अशोक कुमार शर्मा बनाम भारत संघ

इन फैसलों में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि सभी राज्य सरकारें "वन" और "वन जैसे क्षेत्रों" की पहचान शब्दकोश की परिभाषा के अनुसार करें और उनकी रक्षा के लिए समितियों का गठन करें।

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इसके अलावा, याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना था कि भूमि को आईटी पार्क के लिए नीलाम किया जा रहा है, लेकिन EIA नोटिफिकेशन, 2006 के तहत कोई पर्यावरण मूल्यांकन नहीं किया गया।

वहीं, राज्य सरकार का कहना है कि संबंधित भूमि औद्योगिक भूमि है और याचिकाकर्ताओं के तर्क केवल गूगल इमेजेस पर आधारित हैं।

मामले का शीर्षक: कांचा गाचीबोवली वन के संबंध में, तेलंगाना राज्य बनाम एसएमडब्लू(सी) संख्या 3/2025 (और संबंधित मामला)


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