इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंटरमीडिएट परीक्षा की उत्तरपुस्तिकाओं के पुनर्मूल्यांकन (री-इवैल्यूएशन) से जुड़ी एक अहम याचिका पर साफ रुख अपनाते हुए कहा कि कानून इसकी अनुमति नहीं देता। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल अंकों के कम मिलने की आशंका के आधार पर उत्तरपुस्तिकाओं का दोबारा मूल्यांकन कराने का आदेश नहीं दिया जा सकता।
यह मामला 2025 की इंटरमीडिएट परीक्षा में हिंदी और जीवविज्ञान (बायोलॉजी) विषयों के अंकों को लेकर उठी आपत्ति से जुड़ा था।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता फ़ैज़ क़मर ने वर्ष 2025 की इंटरमीडिएट परीक्षा में भाग लिया था। परिणाम घोषित होने के बाद वह हिंदी और बायोलॉजी विषयों में मिले अंकों से संतुष्ट नहीं थीं। इसके बाद उन्होंने बोर्ड में निर्धारित प्रक्रिया के तहत 19 जून 2025 को उत्तरपुस्तिकाओं की सन्निरीक्षा (स्क्रूटनी) के लिए आवेदन किया।
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बोर्ड ने उन्हें 5 अगस्त 2025 को अपनी उत्तरपुस्तिकाएँ देखने के लिए बुलाया। उत्तरपुस्तिकाएँ देखने के बाद याचिकाकर्ता ने कई प्रश्नों में कम अंक दिए जाने की शिकायत करते हुए उसी दिन एक लिखित प्रतिनिधित्व क्षेत्रीय सचिव, माध्यमिक शिक्षा परिषद, मेरठ को सौंपा।
हालांकि, 9 सितंबर 2025 को बोर्ड ने यह कहते हुए अनुरोध खारिज कर दिया कि नियमों के तहत पुनर्मूल्यांकन की अनुमति नहीं है।
याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में कहा गया कि उन्होंने परीक्षा में अच्छा प्रदर्शन किया था और उन्हें उम्मीद थी कि हिंदी में लगभग 90 और बायोलॉजी में 96 अंक मिलेंगे। उनका तर्क था कि कुछ उत्तरों का सही तरीके से मूल्यांकन नहीं हुआ, इसलिए पुनर्मूल्यांकन कराया जाना चाहिए।
राज्य सरकार की ओर से पेश स्थायी अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि बायोलॉजी की उत्तरपुस्तिका की सन्निरीक्षा के दौरान अंकों की जोड़ में गलती पाई गई थी। इस गलती को सुधारते हुए बायोलॉजी में दो अंक बढ़ाए गए, जिससे विषय और कुल अंकों में सुधार हुआ।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदी विषय में कोई त्रुटि नहीं पाई गई और संशोधित अंकतालिका संबंधित विद्यालय को भेज दी गई है। बोर्ड ने यह भी दोहराया कि कानून में कहीं भी पुनर्मूल्यांकन का प्रावधान नहीं है।
कोर्ट की अहम टिप्पणियां
न्यायमूर्ति विवेक सरन ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कानून की स्थिति पर ध्यान दिलाया। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले रण विजय सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य का उल्लेख करते हुए कहा कि-
“यदि परीक्षा से जुड़े नियमों में पुनर्मूल्यांकन का प्रावधान नहीं है, तो केवल असंतोष या अनुमान के आधार पर दोबारा मूल्यांकन का आदेश नहीं दिया जा सकता।”
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कोर्ट ने उत्तर प्रदेश इंटरमीडिएट शिक्षा अधिनियम, 1921 के अध्याय 12 नियम 21(ड़) का हवाला देते हुए कहा कि सन्निरीक्षा का मतलब केवल अंकों की गणना, जोड़ या किसी उत्तर पर अंक छूटने जैसी तकनीकी त्रुटियों की जांच है, न कि उत्तरों का दोबारा मूल्यांकन।
अदालत का निर्णय
अदालत ने माना कि बोर्ड ने कानून के अनुसार कार्य किया है और केवल इस आधार पर कि याचिकाकर्ता को अपने प्रदर्शन से अधिक अंकों की उम्मीद थी, पुनर्मूल्यांकन का आदेश नहीं दिया जा सकता।
इसी के साथ हाईकोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।
Case Title: Faaiz Qamar vs State of U.P. & Others
Case No.: Writ-C No. 42054 of 2025
Case Type: Writ Petition (Education Matter)
Decision Date: 15 December 2025










