इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में कैविएट (पूर्व सूचना) की प्रक्रिया को लेकर गंभीर चिंता जताई है। अदालत के सामने यह सवाल तब उठा, जब एक मामले में कैविएट दर्ज होने के बावजूद अंतरिम आदेश पारित कर दिया गया।
मामला सुनवाई के दौरान केवल एक पक्ष तक सीमित नहीं रहा। कोर्ट ने इसे एक व्यापक प्रशासनिक समस्या मानते हुए, पूरी व्यवस्था पर टिप्पणी की और सुधार के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह याचिका त्रिभवन गोयल द्वारा दाखिल की गई थी। उन्होंने बोर्ड ऑफ रेवेन्यू, प्रयागराज द्वारा 25 मार्च 2025 को पारित अंतरिम स्थगन आदेश को चुनौती दी थी। यह आदेश मथुरा जिले से जुड़ी एक राजस्व पुनरीक्षण याचिका में दिया गया था।
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याची का कहना था कि उन्होंने पहले ही कैविएट दाखिल कर दी थी, जिसका मतलब था कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले उन्हें सुना जाना चाहिए था। इसके बावजूद, न तो उन्हें और न ही उनके वकील को नोटिस दिया गया।
इसी बिंदु पर हाईकोर्ट का ध्यान गया और सुनवाई का दायरा केवल एक आदेश तक सीमित न रहकर, बोर्ड ऑफ रेवेन्यू की कार्यप्रणाली तक फैल गया।
कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में कैविएट दर्ज होने के बाद भी उसकी सूचना संबंधित पक्ष तक प्रभावी ढंग से नहीं पहुँचती।
पीठ ने कहा,
“कैविएट दर्ज होने के बाद भी यदि संबंधित वकील को वास्तविक सूचना न मिले, तो यह प्रक्रिया केवल औपचारिक बनकर रह जाती है।”
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कोर्ट के अनुसार, वर्तमान व्यवस्था में कैविएट केवल फाइल पर दर्ज कर दी जाती है। न तो केस दाखिल करने वाले वकील को इसकी सूचना दी जाती है और न ही यह सुनिश्चित किया जाता है कि कैविएटर को समय रहते सुना जाए।
अदालत ने यह भी नोट किया कि कई बार कैविएट की सूचना डाक से भेजी जाती है, लेकिन वह वापस लौट आती है। इसके बाद कोई वैकल्पिक तरीका अपनाया ही नहीं जाता।
हाईकोर्ट ने साफ कहा कि न्याय का मूल सिद्धांत यह है कि किसी भी व्यक्ति के अधिकारों को प्रभावित करने से पहले उसे सुना जाए।
पीठ ने सुझाव दिया कि:
- कैविएट दाखिल करने वाले वकील से ई-मेल और मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से लिया जाए
- जरूरी मामलों में ई-मेल, व्हाट्सऐप या मैसेजिंग के जरिए सूचना दी जाए
- यदि इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचना दी जाती है, तो उसका प्रमाण रिकॉर्ड में लगाया जाए
- बाहर के शहर से आने वाले वकीलों के लिए वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की व्यवस्था पर विचार किया जाए
कोर्ट ने कहा कि तकनीक का उपयोग करके इस समस्या को काफी हद तक सुलझाया जा सकता है।
अदालत ने यह स्पष्ट किया कि ये दिशा-निर्देश व्यापक हैं। इन्हें लागू करने की जिम्मेदारी बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के अध्यक्ष और सदस्यों पर छोड़ी गई है।
यदि जरूरत हो, तो बोर्ड अपने नियमों या प्रचलित प्रक्रिया में संशोधन पर भी विचार कर सकता है। उद्देश्य केवल एक है - यह सुनिश्चित करना कि कैविएट होने के बावजूद किसी पक्ष को बिना सुने आदेश न पारित हों।
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निर्णय
कैविएट प्रबंधन से जुड़ा मुद्दा इन दिशा-निर्देशों के साथ निस्तारित कर दिया गया। मुख्य याचिका को रोस्टर के अनुसार उपयुक्त पीठ के समक्ष पुनः प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया।
इस आदेश की प्रति बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के अध्यक्ष, रजिस्ट्रार और उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व सचिव को भेजने के निर्देश भी दिए गए।
Case Title: Tribhawan Goyal vs State of Uttar Pradesh & Others
Case No.: Writ-B No. 1332 of 2025
Case Type: Writ Petition
Decision Date: 06 October 2025









