मुंबई में हुई अहम सुनवाई के बाद Bombay High Court ने CIDCO से जुड़े एक पुराने स्टाम्प ड्यूटी विवाद में बड़ा फैसला सुनाया। अदालत ने स्पष्ट किया कि केवल “Agreement to Lease” होने से कोई दस्तावेज़ अपने-आप लीज़ नहीं बन जाता।
यह मामला Deepak Fertilizers and Petrochemicals Corporation Limited और महाराष्ट्र के राजस्व अधिकारियों के बीच था, जिसमें ₹26 लाख से अधिक की स्टाम्प ड्यूटी और पेनल्टी की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने यह मांग पूरी तरह रद्द कर दी।
मामले की पृष्ठभूमि
1990 के दशक की शुरुआत में City and Industrial Development Corporation of Maharashtra Limited (CIDCO) ने नवी मुंबई में उद्योगों के कर्मचारियों के लिए आवासीय योजना शुरू की थी। इसके तहत कंपनियों को प्लॉट दिए जाने थे, ताकि वे अपने स्टाफ के लिए घर बना सकें।
दीपक फर्टिलाइज़र्स ने इस योजना के तहत कलंबोली, नवी मुंबई में एक प्लॉट के लिए बोली जीती। कंपनी ने CIDCO को पूरा प्रीमियम-करीब ₹3.73 करोड़-अदा कर दिया।
इसके बाद 13 अक्टूबर 1995 को दोनों पक्षों के बीच एक दस्तावेज़ साइन हुआ, जिसका नाम था “Agreement to Lease”। इस दस्तावेज़ में कंपनी को चार साल के लिए ज़मीन पर प्रवेश करने और कर्मचारियों के लिए रिहायशी इमारतें बनाने की अनुमति दी गई थी। यह भी लिखा था कि निर्माण पूरा होने और नियमों के पालन के बाद ही 60 साल की लीज़ दी जाएगी।
लेकिन 1998 में स्टाम्प कलेक्टर ने इस समझौते को सीधे “लीज़” मानते हुए भारी स्टाम्प ड्यूटी लगाने का आदेश दे दिया। यहीं से विवाद शुरू हुआ।
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कोर्ट की अहम टिप्पणियाँ
जस्टिस अभय आहूजा की पीठ के सामने मुख्य सवाल यही था-क्या यह दस्तावेज़ वास्तव में लीज़ था, या सिर्फ़ भविष्य की लीज़ का वादा?
अदालत ने समझौते की शर्तों को ध्यान से पढ़ा। कोर्ट ने पाया कि हर जगह कंपनी को “लाइसेंसी” कहा गया है और साफ लिखा है कि जब तक रजिस्टर्ड लीज़ डीड नहीं बनेगी, तब तक ज़मीन पर कोई कानूनी अधिकार नहीं मिलेगा।
अदालत ने कहा,
“Agreement to Lease अपने-आप में लीज़ नहीं होती, जब तक उसमें तत्काल और वर्तमान अधिकार न दिया गया हो।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल निर्माण की अनुमति या भारी प्रीमियम का भुगतान होने से यह मान लेना गलत है कि ज़मीन पर लीज़ का अधिकार मिल गया। असली कसौटी यह है कि क्या ज़मीन का पूर्ण और विशेष कब्ज़ा दिया गया-और इस मामले में ऐसा नहीं था।
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फैसला
हाईकोर्ट ने चीफ कंट्रोलिंग रेवेन्यू अथॉरिटी के 2005 के आदेश को रद्द कर दिया। इसके साथ ही स्टाम्प कलेक्टर द्वारा जारी की गई ₹26.14 लाख की मांग, ब्याज और पेनल्टी सहित, पूरी तरह खत्म कर दी गई।
अदालत ने साफ कहा कि 13 अक्टूबर 1995 का “Agreement to Lease” सिर्फ़ एक लाइसेंस था, न कि लीज़। इसलिए उस पर लीज़ वाली स्टाम्प ड्यूटी नहीं लगाई जा सकती।
याचिका स्वीकार की गई और सभी संबंधित आदेश निरस्त कर दिए गए।
Case Title: Deepak Fertilizers and Petrochemicals Corporation Limited vs Chief Controlling Revenue Authority, Maharashtra & Ors.
Case Number: Writ Petition No. 5635 of 2005
Case Type: Writ Petition (Stamp Duty / Revenue Matter)
Decision Date: 18 December 2025










