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आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा- टैक्स रिफंड का मतलब वास्तविक भुगतान है, सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं, कोविड बहाने के बावजूद विलंबित VAT रिफंड पर ब्याज का आदेश

मेसर्स जेबीडी एजुकेशनल्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य, आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट का आदेश: VAT रिफंड का मतलब वास्तविक भुगतान है, फाइल निपटान नहीं; कोविड छूट से टैक्स रिफंड में देरी माफ़ नहीं।

Shivam Y.
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने कहा- टैक्स रिफंड का मतलब वास्तविक भुगतान है, सिर्फ कागजी कार्रवाई नहीं, कोविड बहाने के बावजूद विलंबित VAT रिफंड पर ब्याज का आदेश

आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट, अमरावती में शुक्रवार को हुई सुनवाई में कोई हाई-प्रोफाइल विवाद नहीं था, बल्कि एक बेहद व्यावहारिक सवाल सामने था- जब सरकार टैक्स रिफंड में देरी करती है, तो उसका बोझ किस पर पड़ेगा? डिवीजन बेंच ने इस सवाल का सीधा जवाब दिया और विशाखापत्तनम की एक कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसे अपने पैसे के लिए लगभग दो साल इंतज़ार करना पड़ा।

पृष्ठभूमि

एम/एस जेडबीडी एजुकेशनल्स प्राइवेट लिमिटेड ने अप्रैल 2013 से मार्च 2016 की VAT अवधि के लिए ₹1.27 करोड़ से अधिक के रिफंड का दावा किया था। जॉइंट कमिश्नर (ऑडिट एंड रिफंड्स) ने 19 जून 2020 को इस रिफंड को मंज़ूरी दी। लेकिन राशि वास्तव में कंपनी के खाते में 31 मार्च 2022 को ही पहुँची- जो आंध्र प्रदेश VAT कानून में निर्धारित 90 दिनों की समय-सीमा से कहीं आगे थी।

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जब कंपनी ने इस देरी के लिए ब्याज की मांग की, तो टैक्स विभाग ने जून 2023 में एक एंडोर्समेंट के ज़रिये इसे खारिज कर दिया। अधिकारियों ने कहा कि इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी, और देरी का कारण कॉम्प्रिहेंसिव फाइनेंशियल मैनेजमेंट सिस्टम (CFMS) की समस्याएँ थीं। साथ ही, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा कोविड काल में दी गई लिमिटेशन अवधि की छूट का भी हवाला दिया।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति रवि नाथ तिलहरी और न्यायमूर्ति सुभेंदु सामंता की पीठ इन दलीलों से सहमत नहीं हुई। क़ानून के प्रावधान पढ़ते हुए पीठ ने कहा कि नियम में ब्याज “वास्तविक रिफंड की तारीख” तक देय बताया गया है, न कि उस तारीख तक जब फाइलें आगे बढ़ा दी जाएँ या आदेश पारित हो जाए।

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पीठ ने टिप्पणी की, “यहाँ इस्तेमाल किया गया शब्द ‘वास्तविक रिफंड’ है,” और स्पष्ट किया कि इसका अर्थ डीलर को वास्तविक भुगतान है, न कि प्रतीकात्मक या कागज़ी कार्रवाई। अदालत ने यह भी कहा कि विभाग द्वारा बताए गए अपने ही तारीख़ों के अनुसार, अंतिम मंज़ूरी भी रिफंड दावा किए जाने के 90 दिनों के भीतर नहीं दी गई थी।

कोविड वाले तर्क पर अदालत ने साफ़ शब्दों में कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई लिमिटेशन की छूट उन पक्षकारों के लिए थी जो अदालतों का रुख कर रहे थे, न कि उन सरकारी अधिकारियों के लिए जो अपने वैधानिक कर्तव्यों को निभाने में देरी कर रहे थे। सिस्टम की दिक्कतें, प्रशासनिक देरी या ट्रेज़री प्रक्रिया पर नियंत्रण न होना- इनमें से कोई भी बात क़ानून में तय दायित्व से विभाग को मुक्त नहीं कर सकती।

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फैसला

रिट याचिका को स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट ने ब्याज से इनकार करने वाले एंडोर्समेंट को रद्द कर दिया। अदालत ने टैक्स अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे APVAT अधिनियम की धारा 38 और नियम 35(8) के अनुसार, वास्तविक रिफंड की तारीख तक की देरी अवधि के लिए ब्याज का भुगतान करें। मामले में किसी तरह की लागत नहीं लगाई गई।

Case Title: M/s JBD Educationals Pvt. Ltd. v. State of Andhra Pradesh & Others

Case No.: Writ Petition No. 5898 of 2024

Case Type: Writ Petition (Tax / VAT Refund & Interest)

Decision Date: 21 November 2025

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