शिमला में सुनवाई के दौरान हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य विद्युत बोर्ड द्वारा जारी एक बड़ी बिजली मांग को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि कानून में तय प्रक्रिया अपनाए बिना की गई अस्थायी आकलन कार्रवाई टिक नहीं सकती। यह फैसला M/s कुंडलास लोह उद्योग बनाम हिमाचल प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड मामले में सुनाया गया।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता उद्योग को वर्ष 2015 में पहली बार यह कहते हुए नोटिस दिया गया था कि उसके परिसर में लगे मीटर से छेड़छाड़ कर बिजली की वास्तविक खपत दर्ज नहीं की गई। इसके आधार पर ₹1.52 करोड़ से अधिक की मांग उठाई गई।
उद्योग ने इस मांग को चुनौती दी। मामला उपभोक्ता फोरम, डिविजनल कमिश्नर और फिर ओम्बुड्समैन तक पहुंचा। कार्यवाही के दौरान बिजली बोर्ड ने पुरानी मांग वापस ले ली।
लेकिन इसके कुछ ही समय बाद, 15 मार्च 2021 को बोर्ड ने उसी अवधि और उसी आरोप के आधार पर ₹4.55 करोड़ से अधिक की नई अस्थायी मांग जारी कर दी। इसके खिलाफ उद्योग ने सीधे हाईकोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ता की दलील
उद्योग की ओर से वरिष्ठ वकील ने दलील दी कि बिजली अधिनियम, 2003 की धारा 126 के तहत अस्थायी आकलन तभी किया जा सकता है जब:
- परिसर का वास्तविक निरीक्षण हुआ हो
- उपकरणों या मीटर की जांच की गई हो
- या उपभोक्ता द्वारा रखे गए रिकॉर्ड की जांच की गई हो
इस मामले में न तो कोई साइट निरीक्षण हुआ और न ही उपभोक्ता के रिकॉर्ड देखे गए। केवल बोर्ड के पास उपलब्ध डेटा के आधार पर मांग जारी कर दी गई, जो कानून के खिलाफ है।
बिजली बोर्ड ने कहा कि यह केवल अस्थायी आकलन आदेश है और उद्योग को पहले आपत्ति दर्ज करनी चाहिए थी। बोर्ड का यह भी कहना था कि उनके पास मौजूद मीटर डेटा ही पर्याप्त आधार है और प्रक्रिया का पालन किया गया।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति अजय मोहन गोयल ने सुनवाई के दौरान रिकॉर्ड तलब किया। अदालत को बताया गया कि कोई निरीक्षण रिपोर्ट मौजूद नहीं है।
अदालत ने टिप्पणी की,
“धारा 126 के तहत कार्यवाही की शुरुआत निरीक्षण से होती है। बिना निरीक्षण के अस्थायी आकलन कानून की भावना के खिलाफ है।”
अदालत ने स्पष्ट किया कि बोर्ड के अपने रिकॉर्ड के आधार पर धारा 126 लागू नहीं की जा सकती। कानून में “रिकॉर्ड” का मतलब उपभोक्ता द्वारा रखे गए रिकॉर्ड से है, न कि विभागीय डेटा से।
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बिजली बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का हवाला दिया, लेकिन हाईकोर्ट ने कहा कि उस फैसले में भी यह साफ है कि धारा 126 की प्रक्रिया निरीक्षण से ही शुरू होती है। वर्तमान मामले में यह बुनियादी शर्त ही पूरी नहीं हुई।
अंतिम निर्णय
हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि अस्थायी आकलन आदेश कानून के विपरीत और मनमाना है, 15 मार्च 2021 का ₹4.55 करोड़ का आदेश रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि ऐसी अवैध कार्रवाई को अंतिम आदेश तक जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
Case Title: M/s Kundlas Loh Udyog vs HPSEBL
Case No.: CWP No. 2239 of 2021
Case Type: Writ Petition (Electricity Law)
Decision Date: 29 December 2025










