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पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने लंबे समय से सेवा दे रहे होमगार्ड को नियमित करने का आदेश दिया, सरकार से नीति बनाने को कहा

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने लंबे समय से कार्यरत होमगार्ड को नियमित करने का आदेश दिया, सरकार को नीति बनाने और शोषण रोकने के निर्देश दिए।

Shivam Y.
पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने लंबे समय से सेवा दे रहे होमगार्ड को नियमित करने का आदेश दिया, सरकार से नीति बनाने को कहा

पंजाब में हज़ारों होमगार्ड्स के लिए असर डालने वाले एक अहम फैसले में, पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 9 अक्टूबर 2025 को आदेश दिया कि राज्य सरकार लंबे समय से कार्यरत होमगार्ड गुरपाल सिंह को नियमित करे और सेवानिवृत्त स्वयंसेवक हरदेव सिंह को ₹5 लाख मुआवज़ा दे।
न्यायमूर्ति जगमोहन बंसल ने टिप्पणी की कि सरकार "स्वयंसेवक" शब्द का इस्तेमाल करके वर्षों से काम कर रहे कर्मचारियों का शोषण नहीं कर सकती।

अदालत ने कहा -

"प्रतिवादी केवल इस आधार पर नियमितीकरण से इनकार नहीं कर सकता कि वे स्वयंसेवक हैं।" अदालत ने नोट किया कि दोनों याचिकाकर्ताओं ने लगभग तीन दशकों तक बिना रुकावट काम किया।

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता हरदेव सिंह और गुरपाल सिंह ने अपनी सेवाओं के नियमितीकरण की मांग करते हुए हाईकोर्ट का रुख किया था। हरदेव सिंह, जो पिछड़ी श्रेणी से हैं, को 1992 में होमगार्ड चालक के रूप में नियुक्त किया गया था, वह भी भर्ती परीक्षा, चिकित्सकीय जाँच और चरित्र सत्यापन के बाद। उस समय उनका वेतन मात्र ₹40 प्रति माह और ₹20 धुलाई भत्ता था, जिसे बाद में समय-समय पर संशोधित किया गया।

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समय बीतने के साथ, उन्हें चालक और गनमैन की ज़िम्मेदारियाँ दी गईं और उन्होंने जून 2025 में सेवानिवृत्ति तक निरंतर सेवा दी। वहीं गुरपाल सिंह, जिन्हें 1993 में भर्ती किया गया, वर्ष 2000 से क्लर्क के पद पर कार्यरत हैं और 2030 में सेवानिवृत्त होंगे।

उनकी मुख्य दलील सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Secretary, State of Karnataka v. Uma Devi (2006) पर आधारित थी, जिसमें कहा गया था कि दस वर्ष से अधिक सेवा करने वाले कर्मचारियों को नियमितीकरण का अधिकार है। उन्होंने तर्क दिया कि अन्य होमगार्ड्स के विपरीत, वे सालभर पूर्णकालिक रूप से कार्यरत रहे, इसलिए उन्हें नियमित कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए।

अदालत के अवलोकन

राज्य की ओर से उप-एडवोकेट जनरल अमन धीर ने दलील दी कि याचिकाकर्ता पंजाब होमगार्ड अधिनियम, 1947 के तहत "स्वयंसेवक" हैं, न कि नियमित कर्मचारी। सरकार ने कहा कि होमगार्ड एक स्वैच्छिक संगठन है जो बाढ़, आग जैसी आपात स्थितियों में मदद के लिए बनाया गया है और इसके सदस्य अन्य निजी कार्य भी कर सकते हैं।

लेकिन न्यायमूर्ति बंसल ने इस तर्क को सख्ती से खारिज कर दिया। उन्होंने टिप्पणी की कि राज्य "स्वयंसेवा की अवधारणा का दुरुपयोग कर रहा है" ताकि अपनी ज़िम्मेदारियों से बच सके।
उन्होंने लिखा -

"एक ऐसे देश में जहाँ बेरोज़गारी और गरीबी आम बात है, यह मानना कठिन है कि कोई व्यक्ति दशकों तक स्वयंसेवक के रूप में बिना पारिश्रमिक के काम करेगा।"

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बेंच ने कई सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों का उल्लेख किया - जैसे Nihal Singh v. State of Punjab (2013), Jaggo v. Union of India (2024), और K. Velajagan v. Union of India (2025) - जिनमें कहा गया कि अस्थायी कर्मचारियों को अनिश्चित काल तक अस्थायी नहीं रखा जा सकता, और तकनीकी प्रक्रियाओं का उपयोग करके लंबे समय से कार्यरत कर्मचारियों के अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति बंसल ने कहा -

"याचिकाकर्ता को वेतन मिला, भले ही उसे मानदेय कहा गया हो। उसने सामान्य कर्मचारी की तरह काम किया। यह अनुचित होगा यदि अन्य विभागों के क्लास III या IV कर्मचारियों को नियमित किया जाए लेकिन होमगार्ड्स को नहीं।"

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला Grah Rakshak, Home Guards Welfare Association v. State of H.P. (2015) से भिन्न है, क्योंकि वहाँ के होमगार्ड्स केवल कभी-कभी बुलाए जाते थे, जबकि यहाँ याचिकाकर्ताओं ने तीस वर्षों तक सालभर पूरा समय कार्य किया, जो राज्य ने स्वयं भी नहीं नकारा।

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निर्णय

सभी तथ्यों और पूर्वनिर्णयों का विश्लेषण करने के बाद, अदालत ने माना कि हरदेव सिंह और गुरपाल सिंह वास्तव में पूर्णकालिक कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे, न कि पारंपरिक अर्थ में स्वयंसेवक।
अदालत ने आदेश दिया -

  1. हरदेव सिंह को ₹5,00,000 मुआवज़ा दिया जाए, क्योंकि उन्हें दशकों की सेवा के बावजूद ग्रेच्युटी, पेंशन या अवकाश नकदीकरण नहीं मिला।
  2. गुरपाल सिंह की सेवा का नियमितीकरण किया जाए और छह महीने के भीतर आदेश पारित किया जाए, अन्यथा वे स्वतः नियमित माने जाएंगे।
  3. राज्य सरकार को निर्देश दिया गया कि ऐसे ही अन्य होमगार्ड्स के लिए एक स्पष्ट नीति तैयार करे, जो वर्षों से निरंतर और पूर्णकालिक कार्य कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसे मामलों की बाढ़ न आए।

न्यायमूर्ति बंसल ने अपने निर्णय के अंत में तीखी टिप्पणी की -

"राज्य स्वयंसेवक के नाम पर नागरिकों का शोषण कर रहा है। यह अदालत ऐसी अन्यायपूर्ण स्थिति पर आँखें बंद नहीं कर सकती।"

इसके साथ ही अदालत ने दोनों याचिकाओं को स्वीकार करते हुए सभी लंबित आवेदनों को निपटाया।

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