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सुप्रीम कोर्ट ने हिंद समाचार लिमिटेड को फर्जी लाइसेंस मामले से किया बरी, हाईकोर्ट का 'पे एंड रिकवर' आदेश रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट का आदेश रद्द किया, कहा-1993 हादसे में फर्जी लाइसेंस या मालिक की गलती का कोई सबूत नहीं।

Vivek G.
सुप्रीम कोर्ट ने हिंद समाचार लिमिटेड को फर्जी लाइसेंस मामले से किया बरी, हाईकोर्ट का 'पे एंड रिकवर' आदेश रद्द

दिल्ली यूनिट की हिंद समाचार लिमिटेड को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। बुधवार को अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें कंपनी को “पे एंड रिकवर” के तहत बीमा राशि चुकाने का निर्देश दिया गया था। यह फैसला 1993 के उस सड़क हादसे से जुड़ा है जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई थी और दो गंभीर रूप से घायल हुए थे।

पृष्ठभूमि

मामला 26 जनवरी 1993 को हुए एक हादसे से जुड़ा है, जब हिंद समाचार लिमिटेड का ट्रक और एक मैटाडोर वैन आपस में टकरा गए। वैन में सवार नौ यात्रियों की मौके पर मौत हो गई और दो घायल हुए। ट्रिब्यूनल ने दोनों चालकों को लापरवाही का दोषी ठहराया और जिम्मेदारी 75% ट्रक चालक तथा 25% वैन चालक पर तय की गई।

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बीमा कंपनियों ने मुआवजा तो अदा कर दिया, लेकिन बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने यह पाया कि ट्रक चालक का ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी था। इस आधार पर अदालत ने नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को यह अनुमति दे दी कि वह मुआवजे की राशि वाहन के मालिक यानी हिंद समाचार लिमिटेड से वसूल करे। कंपनी ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

अदालत के अवलोकन

न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने बेंच की ओर से कहा कि हाईकोर्ट ने “अनुमान और कल्पनाओं” के आधार पर निष्कर्ष निकाला और सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों को नज़रअंदाज़ किया। अदालत ने कहा कि बीमा कंपनी यह साबित नहीं कर पाई कि वाहन मालिक ने जानबूझकर फर्जी लाइसेंस वाले चालक को नियुक्त किया था।

बेंच ने कहा, “सिर्फ यह दिखा देना पर्याप्त नहीं कि लाइसेंस फर्जी था; बीमाकर्ता को यह भी साबित करना होगा कि मालिक ने जानबूझकर पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन किया।”

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सुप्रीम कोर्ट ने यह भी पाया कि गुरदासपुर के जिला परिवहन कार्यालय (DTO) और अलवर आरटीओ से मिले अभिलेखों पर हाईकोर्ट का भरोसा “असंगत और अधूरा” था। दुर्घटना स्थल से कथित रूप से जब्त ड्राइविंग लाइसेंस के बारे में पुलिस के पास कोई वैध जब्ती रिकॉर्ड या स्वतंत्र गवाह नहीं था।

महत्वपूर्ण रूप से, अदालत ने यह माना कि हिंद समाचार लिमिटेड एक कंपनी है और उसने चालक का लाइसेंस स्वयं प्रस्तुत कर सावधानी दिखाई थी। “सिर्फ इसलिए संदेह नहीं किया जा सकता कि कंपनी ने लाइसेंस अदालत में प्रस्तुत किया,” न्यायमूर्ति चंद्रन ने कहा। “यह कदम सतर्कता दर्शाता है, मिलीभगत नहीं।”

सुप्रीम कोर्ट ने लेहरू, स्वर्ण सिंह, पेप्सू आरटीसी और गीता देवी जैसे पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि वाहन मालिक पर यह दायित्व नहीं डाला जा सकता कि वह हर ड्राइविंग लाइसेंस की सत्यता परिवहन कार्यालय से जांचे - जब तक कि जालसाजी के स्पष्ट संकेत न हों।

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निर्णय

अपील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंद समाचार लिमिटेड की ओर से कोई लापरवाही या मिलीभगत साबित नहीं हुई। अदालत ने हाईकोर्ट का वह आदेश रद्द कर दिया जिसमें बीमा कंपनी को मुआवजे की वसूली का अधिकार दिया गया था।

“बीमा कंपनी बीमित पक्ष की किसी भी गलती को साबित करने में विफल रही,” बेंच ने निष्कर्ष में कहा। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल के मूल आदेश को बहाल किया और साफ किया कि बीमा कंपनी को ही मुआवजे की राशि वहन करनी होगी, मालिक से वसूली का कोई अधिकार नहीं रहेगा।

इस तरह 32 साल पुराना यह विवाद आखिरकार खत्म हुआ - हिंद समाचार लिमिटेड पूरी तरह बरी हो गई और सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह दोहराया कि सिर्फ शक के आधार पर किसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

Case: Hind Samachar Ltd. (Delhi Unit) vs. National Insurance Company Ltd. & Others

Case Type: Civil Appeal Nos. 12442–12446 of 2024 (and connected appeals)

Date of Judgment: October 8, 2025

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