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बॉम्बे हाई कोर्ट ने जलना के व्यक्ति को POCSO मामले में बरी किया, देरी, पारिवारिक रंजिश और सिखाए जाने की आशंका पर जताई चिंता

शेख मूसा शेख बाबा बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य, बॉम्बे हाई कोर्ट ने जलना के व्यक्ति को POCSO मामले में बरी किया, एफआईआर में देरी, पारिवारिक रंजिश और नाबालिग को सिखाए जाने की आशंका का हवाला दिया।

Shivam Y.
बॉम्बे हाई कोर्ट ने जलना के व्यक्ति को POCSO मामले में बरी किया, देरी, पारिवारिक रंजिश और सिखाए जाने की आशंका पर जताई चिंता

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने सोमवार को जलना जिले के 45 वर्षीय किसान को POCSO मामले में दोषमुक्त कर दिया। यह मामला एक पड़ोसी विवाद से शुरू होकर लंबी कानूनी लड़ाई में बदल गया था। कोर्ट रूम में सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति नीरज पी. धोटे ने साक्ष्यों का बारीकी से विश्लेषण किया और कई मौकों पर यह कहा कि आपराधिक मुकदमे में कुछ कमियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

पृष्ठभूमि

शेख मूसा शेख बाबा को अगस्त 2023 में जलना की POCSO अदालत ने POCSO अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दोषी ठहराया था। उसे पांच साल के कठोर कारावास सहित अन्य सजाएं दी गई थीं, जो एक नाबालिग लड़की की मां की शिकायत पर आधारित थीं। लड़की आरोपी की रिश्तेदार और पड़ोसी थी।

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अभियोजन का कहना था कि बच्चे ने पुलिस में शिकायत दर्ज होने से करीब पंद्रह दिन पहले अनुचित स्पर्श की बात अपनी मां को बताई थी। शुरू में परिवार ने पुलिस में जाने से परहेज किया, लेकिन कथित धमकी और दोनों परिवारों के बीच झगड़े के बाद मामला बढ़ गया। इसके बाद बदनापुर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई।

न्यायालय की टिप्पणियां

हालांकि इस बात पर कोई विवाद नहीं था कि पीड़िता नाबालिग थी, लेकिन हाई कोर्ट ने अभियोजन मामले में कई गंभीर खामियां पाईं। पीठ ने नोट किया कि दोनों परिवारों के रिश्ते पहले से ही खराब थे और आरोपी की पत्नी ने POCSO शिकायत से सिर्फ दो दिन पहले पीड़िता के परिजनों के खिलाफ एक गैर-संज्ञेय शिकायत दर्ज कराई थी।

पीठ ने कहा, “पंद्रह दिन की देरी से एफआईआर दर्ज होना और दोनों परिवारों के बीच स्वीकार की गई रंजिश, इस मामले में अहम हो जाती है,” और यह भी जोड़ा कि इस देरी की संतोषजनक व्याख्या नहीं दी गई।

अदालत ने पीड़िता की मां की गवाही की भी गहन जांच की, जो स्वयं घटना की प्रत्यक्षदर्शी नहीं थीं। दूसरे कथित घटनाक्रम को लेकर उनकी बातों का समर्थन पीड़िता के पिता की गवाही से नहीं हुआ। इस पर न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि उनकी गवाही “जैसी है वैसी स्वीकार नहीं की जा सकती” और इसके लिए मजबूत पुष्टि जरूरी है।

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सबसे अहम बात, अदालत ने बच्चे की गवाही पर भी विचार किया। यह मानते हुए कि कानून में कई बार पीड़िता की अकेली गवाही भी पर्याप्त हो सकती है, न्यायमूर्ति धोटे ने कहा कि ऐसा तभी संभव है जब गवाही “बिल्कुल भरोसेमंद” हो। यहां बच्चे का बयान पुलिस स्टेशन में उसकी मां की मौजूदगी में दर्ज किया गया था और घटनाओं की संख्या व परिस्थितियों को लेकर असंगतियां सामने आईं। पीठ ने कहा, “पीड़िता को सिखाए जाने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता,” खासकर तब जब दोनों परिवारों के बीच पहले से विवाद चल रहा था।

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निर्णय

अंततः हाई कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन पक्ष आरोपों को संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। अपील स्वीकार करते हुए अदालत ने दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया, शेख मूसा शेख बाबा को सभी आरोपों से बरी किया और निर्देश दिया कि यदि वह किसी अन्य मामले में आवश्यक न हो तो उसे तुरंत रिहा किया जाए। अदालत ने जुर्माने की राशि वापस करने और सभी लंबित आवेदनों को निपटाने का भी आदेश दिया, जिससे इस मामले का औपचारिक रूप से अंत हो गया।

Case Title: Shaikh Musa Shaikh Baba vs The State of Maharashtra & Another

Case Type: Criminal Appeal (POCSO)

Case No.: Criminal Appeal No. 362 of 2024

Date of Judgment/Order: 16 December 2025

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