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बॉम्बे हाईकोर्ट ने नानावटी अस्पताल और आयकर विभाग के बीच टीडीएस विवाद पर फैसला सुनाया, एएमसी मुद्दा वापस आईटीएटी भेजा

आयकर आयुक्त, टीडीएस- 1, मुंबई बनाम डॉ. बलाभाई नानावटी अस्पताल - बॉम्बे हाईकोर्ट ने नानावटी अस्पताल से जुड़े टीडीएस विवाद का निपटारा किया; डॉक्टरों की फीस पेशेवर आय मानी, एएमसी मामला आईटीएटी भेजा।

Abhijeet Singh
बॉम्बे हाईकोर्ट ने नानावटी अस्पताल और आयकर विभाग के बीच टीडीएस विवाद पर फैसला सुनाया, एएमसी मुद्दा वापस आईटीएटी भेजा

15 सितम्बर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट ने आयकर विभाग और डॉ. बलाभाई नानावटी अस्पताल के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद पर अहम फैसला सुनाया। मामला इस बात पर केंद्रित था कि अस्पताल द्वारा कंसल्टेंट डॉक्टरों और मेडिकल उपकरणों के वार्षिक रखरखाव अनुबंध (AMC) पर काटे गए स्रोत पर कर (TDS) की श्रेणीकरण सही था या नहीं।

पृष्ठभूमि

यह विवाद 2010 में विभाग द्वारा की गई सर्वे जांच से शुरू हुआ था, जिसमें टीडीएस कटौती में गड़बड़ी पाई गई। आकलन अधिकारी ने निष्कर्ष निकाला कि कंसल्टेंट डॉक्टर वास्तव में कर्मचारी हैं, और उन्हें दिए गए भुगतान को ''वेतन'' मानते हुए धारा 192 के तहत टीडीएस काटा जाना चाहिए था। इसी तरह, मेडिकल उपकरणों के रखरखाव पर किए गए भुगतान को ''तकनीकी सेवाएँ'' माना गया और उस पर धारा 194J लागू बताई गई। इन आधारों पर अस्पताल को डिफॉल्टर घोषित कर टैक्स व ब्याज की मांग उठाई गई।

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अस्पताल ने आदेश को चुनौती दी और आयुक्त (अपील) व बाद में आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT) ने ज्यादातर मामलों में अस्पताल के पक्ष में फैसला दिया। इससे असंतुष्ट होकर विभाग ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति बी.पी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौश पी. पूनावाला की खंडपीठ ने पहले यह प्रश्न लिया कि क्या कंसल्टेंट डॉक्टरों को कर्मचारी माना जा सकता है। तथ्यों की समीक्षा के बाद न्यायालय ने आईटीएटी के निष्कर्ष को बरकरार रखा।

''रिकॉर्ड से साफ है कि ये डॉक्टर स्वतंत्र रूप से अन्यत्र प्रैक्टिस कर सकते हैं, इन्हें निश्चित वेतन नहीं मिलता और ये अस्पताल के सेवा नियमों से बंधे नहीं हैं,''

पीठ ने कहा। अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि चूंकि डॉक्टर खुद अपनी आय को ''व्यवसाय या पेशे से आय'' के रूप में दाखिल करते हैं, इसलिए इन्हें वेतनभोगी कर्मचारी मानना तर्कसंगत नहीं। इस मुद्दे पर अदालत ने माना कि धारा 194J (पेशेवर सेवाएँ) के तहत टीडीएस काटा जाना सही था, न कि धारा 192 (वेतन) के तहत।

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दूसरा विवाद एएमसी यानी मेडिकल उपकरणों जैसे एमआरआई मशीन और सीटी स्कैनर की रखरखाव सेवाओं पर था। राजस्व विभाग का तर्क था कि ये तकनीकी सेवाएँ हैं, जबकि अस्पताल का कहना था कि ये महज़ रूटीन रखरखाव अनुबंध हैं, जिन पर धारा 194C लागू होती है।

इस बिंदु पर अदालत आईटीएटी की कार्यवाही से संतुष्ट नहीं हुई।

''अंतिम तथ्य- खोज प्राधिकारी होने के नाते, ट्रिब्यूनल को प्रत्येक एएमसी का स्वतंत्र विश्लेषण करना चाहिए था, न कि केवल आयुक्त (अपील) के निष्कर्षों को दोहराना,''

न्यायाधीशों ने टिप्पणी की। उन्होंने यह भी इंगित किया कि 2011- 12 के एक मूल्यांकन वर्ष में, एक अन्य अपीलीय अधिकारी पहले ही नियमित रखरखाव और विशेष तकनीकी अनुबंधों के बीच अंतर कर चुका था।

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निर्णय

अपने अंतिम आदेश में हाईकोर्ट ने डॉक्टरों के भुगतान से जुड़े राजस्व के अपील को खारिज कर दिया और स्पष्ट किया कि कोई नियोक्ता- कर्मचारी संबंध नहीं है। लेकिन एएमसी से संबंधित आईटीएटी के आदेश को रद्द कर दिया गया और मामले को नए सिरे से सुनवाई के लिए वापस भेज दिया गया।

पीठ ने निष्कर्ष निकाला:

  • डॉक्टरों के भुगतान वाला मुद्दा खारिज, कोई गंभीर विधिक प्रश्न उत्पन्न नहीं।
  • एएमसी मुद्दा आईटीएटी को लौटाया गया, ताकि हर अनुबंध का स्वतंत्र परीक्षण कर यह तय किया जाए कि टीडीएस धारा 194C या 194J के तहत काटा जाना चाहिए।
  • अस्पताल को डिफॉल्टर मानने का प्रश्न आईटीएटी की नई रिपोर्ट पर निर्भर करेगा।

कोई लागत आदेश पारित नहीं किया गया।

केस शीर्षक : आयकर आयुक्त, टीडीएस- 1, मुंबई बनाम डॉ. बलाभाई नानावटी अस्पताल

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