कोर्ट नंबर में सुनवाई के दौरान माहौल असामान्य रूप से गंभीर था। बहस खत्म होने के बाद जब आदेश सुनाया गया, तो साफ महसूस हुआ कि मामला सिर्फ ज़मानत तक सीमित नहीं था। शुक्रवार को दिल्ली उच्च न्यायालय ने मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले में संदीपा विर्क को नियमित ज़मानत देते हुए जांच एजेंसी के रवैये पर कई अहम सवाल खड़े किए।
न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा की टिप्पणी से यह संकेत मिला कि अदालत केवल आरोपों की सूची नहीं, बल्कि पूरी समय-रेखा और कार्रवाई की निष्पक्षता भी देख रही थी।
Background
मामले की जड़ें साल 2016 में दर्ज एक एफआईआर से जुड़ी हैं। मोहाली में दर्ज इस केस में आरोप था कि एक फिल्म में लीड रोल दिलाने का झांसा देकर शिकायतकर्ता और उसके परिवार से लगभग 6 करोड़ रुपये लिए गए। पुलिस जांच के बाद चार्जशीट सिर्फ अमित गुप्ता के खिलाफ दाखिल हुई।
इसके करीब नौ साल बाद, प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग कानून (PMLA) के तहत ईसीआईआर दर्ज की। आरोप लगा कि संदीपा विर्क के खातों में एक करोड़ से अधिक की रकम आई, जिससे मुंबई और दिल्ली में संपत्तियां खरीदी गईं। ईडी ने यह भी कहा कि एक कथित फर्जी ई-कॉमर्स वेबसाइट के ज़रिये पैसे को “साफ” दिखाने की कोशिश हुई और जांच से पहले मोबाइल फोन नष्ट किया गया।
संदीपा विर्क को ईसीआईआर दर्ज होने के अगले ही दिन गिरफ्तार कर लिया गया।
Court’s Observations
सुनवाई के दौरान अदालत ने साफ कहा कि ज़मानत पर विचार करते समय सिर्फ आरोप नहीं, बल्कि पूरा संदर्भ देखना ज़रूरी है। अदालत ने नोट किया कि संदीपा विर्क न तो मूल धोखाधड़ी के केस में चार्जशीटेड थीं और न ही बाद में दायर निजी शिकायत में उन्हें तलब किया गया।
अदालत ने टिप्पणी की, “रिकॉर्ड यह दर्शाता है कि प्रारंभिक जांच के किसी भी चरण में आवेदिका की भूमिका स्पष्ट नहीं पाई गई।”
कोर्ट ने यह भी ध्यान दिलाया कि शिकायतकर्ता को करीब 2.7 करोड़ रुपये पहले ही लौटाए जा चुके हैं। ऐसे में पूरे 6 करोड़ को मनी लॉन्ड्रिंग का मामला मानना, इस स्तर पर, उचित नहीं दिखता।
महिला अभियुक्त होने के कारण PMLA की कड़ी ज़मानत शर्तों पर भी चर्चा हुई। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि महिला के मामले में ये शर्तें स्वतः लागू नहीं होतीं और सामान्य ज़मानत सिद्धांतों पर विचार किया जा सकता है।
एक अहम सवाल यह भी उठा कि मुख्य आरोपी अमित गुप्ता, जो मूल केस में घोषित भगोड़ा है, अब तक गिरफ्तार क्यों नहीं हुआ, जबकि संदीपा विर्क चार महीने से जेल में थीं।
Decision
सभी तथ्यों को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने संदीपा विर्क को नियमित ज़मानत देने का आदेश दिया। अदालत ने दो लाख रुपये के निजी मुचलके, पासपोर्ट जमा करने, जांच में सहयोग करने और गवाहों को प्रभावित न करने जैसी शर्तें लगाईं।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह आदेश केवल ज़मानत तक सीमित है और इससे मामले के गुण-दोष पर कोई राय नहीं मानी जाएगी। इसी के साथ ज़मानत याचिका का निपटारा कर दिया गया।
Case Title: Sandeepa Virk vs Directorate of Enforcement
Case No.: Bail Application No. 4331 of 2025
Case Type: Regular Bail Application (Money Laundering Case under PMLA)
Decision Date: 27 December 2025










