रांची में गुरुवार को जब झारखंड हाईकोर्ट ने केंद्रीय विद्यालय संगठन (केवीएस) द्वारा दायर दो रिट याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, तो अदालत कक्ष में वही परिचित, हल्की-सी तनावपूर्ण शांति थी। मामला सिर्फ लेखा-जोखा या तकनीकी नियमों का नहीं था, बल्कि दो बुजुर्ग सेवानिवृत्त शिक्षकों की रिटायरमेंट के बाद की सुरक्षा दांव पर लगी थी। सुनवाई के अंत तक पीठ का संदेश साफ था-जब कानून खुद कर्मचारी कल्याण की ओर झुका हो, तो पेंशन लाभ केवल तकनीकी आधार पर नहीं छीने जा सकते।
पृष्ठभूमि
ये याचिकाएं 28 मई 2025 को केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के उस आदेश से जुड़ी थीं, जिसमें केवीएस को दो पूर्व कर्मचारियों के सेवानिवृत्ति लाभों को अंशदायी भविष्य निधि (सीपीएफ) योजना से सामान्य भविष्य निधि-सह-पेंशन योजना में परिवर्तित करने का निर्देश दिया गया था।
Read also:- राजनीश कुमार पांडेय मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई टाली, अगली सुनवाई तक राज्यों को भर्ती प्रक्रिया जारी
एक प्रतिवादी, जो 1981 में नियुक्त योग शिक्षक थे, 2019 में सेवानिवृत्त हुए। दूसरे ने 1980 में प्राथमिक शिक्षक के रूप में केवीएस में सेवा शुरू की, बाद में उप-प्राचार्य बने और 2014 में रिटायर हुए। दोनों ने सेवा के शुरुआती वर्षों में सीपीएफ का विकल्प चुना था। लेकिन अहम बात यह रही कि 1980 के दशक के अंत में जारी सरकारी और केवीएस के ज्ञापनों के बाद, दोनों में से किसी ने भी सीपीएफ में बने रहने के लिए नया विकल्प नहीं दिया।
उनका कहना सीधा था-नियमों के अनुसार, विकल्प न देने का अर्थ स्वतः पेंशन योजना में आ जाना है। केवीएस ने इस दलील से असहमति जताई और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
अदालत की टिप्पणियां
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली खंडपीठ ने सरकारी ज्ञापनों, केवीएस के परिपत्रों और सुप्रीम कोर्ट के बाध्यकारी फैसलों को विस्तार से देखा। पीठ ने माना कि तथ्यों को लेकर लगभग कोई विवाद नहीं था।
Read also:- NIPER अनुशासनात्मक मामले में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के पुनर्बहाली आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक
मामले का एक अहम दस्तावेज 1 सितंबर 1988 का केवीएस ज्ञापन था। पीठ ने कहा, “साधारण पाठ से यह स्पष्ट है कि यदि निर्धारित तिथि तक सीपीएफ योजना में बने रहने का विकल्प नहीं दिया गया, तो कर्मचारी को जीपीएफ-सह-पेंशन योजना में स्थानांतरित माना जाएगा।”
केवीएस का तर्क था कि वह एक स्वायत्त संस्था है और एक बार सीपीएफ का विकल्प चुन लेने के बाद उसे बदला नहीं जा सकता। अदालत इस दलील से सहमत नहीं हुई। यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली बनाम शशि किरण मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि पेंशन योजनाएं लाभकारी प्रकृति की होती हैं और उनकी व्याख्या सेवानिवृत्त कर्मचारियों के पक्ष में की जानी चाहिए।
अदालत ने टिप्पणी की, “किसी योजना को चुनने का अधिकार स्वयं एक कल्याणकारी नीति से उत्पन्न होता है, और कठोर व्याख्या के आधार पर पेंशन लाभ से इनकार करना भेदभावपूर्ण होगा।”
पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि यूनियन ऑफ इंडिया बनाम प्रियब्रत सिंह मामले में झारखंड हाईकोर्ट पहले ही इसी तरह का मुद्दा तय कर चुका है और सुप्रीम कोर्ट द्वारा एसएलपी खारिज किए जाने के बाद वह फैसला अंतिम हो चुका है।
Read also:- सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट में एड-हॉक जजों की शक्तियों पर स्थिति स्पष्ट की, बेंच गठन का अधिकार मुख्य न्यायाधीशों
निर्णय
अधिकरण के तर्क से पूरी तरह सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि सीपीएफ से जीपीएफ-सह-पेंशन योजना में रूपांतरण का निर्देश देने में कोई कानूनी खामी नहीं है। केवीएस की याचिकाओं में “कोई दम” न पाते हुए पीठ ने दोनों रिट याचिकाओं को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया। लंबित सभी अंतरिम आवेदन भी निपटा दिए गए, जिससे यह लंबा विवाद यहीं समाप्त हो गया।
Case Title: Kendriya Vidyalaya Sangathan vs. Bhrigu Nandan Sharma & Another
Case No.: W.P.(S) No. 6520 of 2025 with W.P.(S) No. 6552 of 2025
Case Type: Service Matter – Pension / CPF to GPF-cum-Pension Conversion
Decision Date: 05 December 2025










