मेन्यू
समाचार खोजें...
होम

केरल हाईकोर्ट ने देरी से पेशी पर पुलिस को फटकार लगाई, 'अमान्य गिरफ्तारी' पाते हुए NDPS केस में जमानत मंजूर की

मुहम्मद नशिफ यू बनाम केरल राज्य और अन्य, केरल हाईकोर्ट ने देरी से पेशी को अवैध मानते हुए NDPS केस में जमानत दी, अनुच्छेद 22(2) के उल्लंघन पर पुलिस को फटकार लगाई।

Vivek G.
केरल हाईकोर्ट ने देरी से पेशी पर पुलिस को फटकार लगाई, 'अमान्य गिरफ्तारी' पाते हुए NDPS केस में जमानत मंजूर की

एर्नाकुलम, 21 नवंबर - शुक्रवार की सुनवाई के दौरान माहौल थोड़ा तनावपूर्ण था, जब केरल हाईकोर्ट ने पुलिस को इस बात पर कड़ी फटकार लगाई कि NDPS केस में गिरफ्तार व्यक्ति को संविधान द्वारा तय 24 घंटे की समय सीमा में मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया गया। न्यायमूर्ति सी.एस. डायस ने इसे

पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, 39 वर्षीय मुहम्मद नाशिफ, मलप्पुरम का निवासी है और जुलाई 20 को पुलिस ने उसके पास से कथित तौर पर 338.16 ग्राम एमडीएमए बरामद किया था। उसके साथ एक सह-आरोपी भी मौजूद था। इतनी बड़ी मात्रा होने से मामला NDPS एक्ट की सख्त धारा 37 के दायरे में आ गया, जिससे आमतौर पर जमानत मिलना बेहद मुश्किल हो जाता है।

Read also: लगभग तीन साल जेल में रहने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने आगरा के युवक को दी जमानत, इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित

लेकिन असली मोड़ बाद में आया। पुलिस ने नाशिफ को दोपहर करीब 12:45 बजे गिरफ्तार किया, जबकि उसे मजिस्ट्रेट के सामने अगले दिन 2:10 बजे पेश किया गया - यानी 24 घंटे की संवैधानिक सीमा से काफी देर बाद। पालक्काड सेशंस कोर्ट ने इस देरी को स्वीकार भी किया और केवल उसकी रिहाई का आदेश दिया, जमानत नहीं दी।

इसके तुरंत बाद, जेल परिसर के बाहर ही पुलिस ने दोबारा नाशिफ को गिरफ्तार कर लिया, जिसके कारण वह हाईकोर्ट पहुंचा। उसके वकीलों ने तर्क दिया कि यह “न्यायिक आदेश का मज़ाक” है और पुलिस ने प्रक्रिया की कमजोरी का फायदा उठाया।

अदालत की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति डायस ने विस्तृत रूप से बताया कि अनुच्छेद 22(2) कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा के लिए बनाया गया है। आदेश में कहा गया, “यह संरक्षण केवल प्रक्रियात्मक सुरक्षा नहीं, बल्कि पुलिस के दुरुपयोग के खिलाफ एक मौलिक कवच है।”

Read also: 'अत्यावश्यक' मामलों को छोड़कर केवल लिखित स्लिप से ही अर्जेंट मेंशनिंग, नए CJI सुर्या कांत ने पहली सुनवाई में

बहस के दौरान, याचिकाकर्ता की ओर से सुप्रीम कोर्ट के Directorate of Enforcement v. Subhash Sharma फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें 24 घंटे के नियम के टूटते ही हिरासत को अवैध माना गया था। इसी आधार पर कोर्ट ने टिप्पणी की, “जब अदालत को यह मिलता है कि संवैधानिक सुरक्षा का उल्लंघन हुआ है, तब आरोपी को जमानत देना अदालत का दायित्व बन जाता है।”

राज्य का रुख अलग था। सरकारी वकील ने कहा कि BNSS की धारा 483(3) पुलिस को फिर से गिरफ्तारी की शक्ति देती है और NDPS केस की गंभीरता देखते हुए यह उचित था। उनका तर्क था कि NDPS एक्ट की धारा 37 के तहत कठोर जमानत शर्तें लागू होती हैं।

लेकिन हाईकोर्ट ने यह तर्क खारिज कर दिया और स्पष्ट कहा कि संविधान सर्वोपरि है। पीठ ने कहा, “जेल परिसर से की गई दोबारा गिरफ्तारी ने संवैधानिक सुरक्षा को कमजोर कर दिया और पहले आदेश को निष्प्रभावी बना दिया।” अदालत ने यह भी जोड़ा कि ऐसी कार्रवाई को स्वीकार नहीं किया जा सकता।

Read also: 2023 की आपराधिक अपील मामले में अशूमल सिंधी की जमानत शर्तों में संशोधन याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट ने

निर्णय

हाईकोर्ट ने अपनी मौलिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए रिमांड आदेश रद्द कर दिया और सेशंस कोर्ट के पूर्व आदेश में संशोधन करते हुए औपचारिक रूप से जमानत दे दी। नाशिफ को ₹1 लाख के बांड और दो सक्षम ज़मानतदार देने होंगे तथा चार्जशीट दाखिल होने तक हर शनिवार सुबह जांच अधिकारी के सामने हाज़िर होना पड़ेगा। उसे क्षेत्राधिकार छोड़ने, गवाहों को प्रभावित करने या समान अपराध करने से भी रोका गया है। किसी भी शर्त के उल्लंघन पर जमानत रद्द हो सकती है।

सुनवाई शांत ढंग से समाप्त हुई, लेकिन यह संदेश गूंजता रहा - संवैधानिक समय सीमा पसंद-नापसंद का विषय नहीं, बल्कि अनिवार्य है, चाहे मामला NDPS का ही क्यों न हो।

Case Title: Muhammed Nashif U vs State of Kerala & Another

Case No.: Crl.MC No. 9946 of 2025

Case Type: Criminal Miscellaneous Case (NDPS-related)

Decision Date: 21 November 2025

📄 Download Full Court Order
Official judgment document (PDF)
Download

More Stories