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मालाबार में लघु खनिजों पर लंबे समय से चले आ रहे रॉयल्टी विवाद का अंत: केरल हाईकोर्ट ने 2021 वेस्टिंग कानून के बाद राज्य की शक्तियाँ स्पष्ट कीं

टूटू जोस और अन्य बनाम केरल राज्य और अन्य मामले में, केरल हाई कोर्ट ने 2021 मिनरल्स वेस्टिंग एक्ट को बरकरार रखा, लेकिन मालाबार में 2019 से पहले की रॉयल्टी की मांगों को रद्द कर दिया, जिससे माइनर मिनरल्स पर राज्य की शक्तियों को साफ़ किया गया।

Vivek G.
मालाबार में लघु खनिजों पर लंबे समय से चले आ रहे रॉयल्टी विवाद का अंत: केरल हाईकोर्ट ने 2021 वेस्टिंग कानून के बाद राज्य की शक्तियाँ स्पष्ट कीं

शुक्रवार को केरल हाईकोर्ट की गलियारों में असामान्य गंभीरता देखने को मिली, जब न्यायमूर्ति कौसर एडप्पागथ ने लगभग एक दशक से लंबित रिट याचिकाओं के एक समूह का निपटारा किया। विवाद का मूल सवाल मालाबार क्षेत्र के सैकड़ों ज़मीन मालिकों को सीधे प्रभावित करता है-निजी ज़मीन के नीचे मौजूद खनिजों का असली मालिक कौन है, और उनकी रॉयल्टी वसूलने का अधिकार किसे है?

कई पन्नों में फैला यह फैसला 2021 में राज्य द्वारा लाए गए नए कानून के बाद पैदा हुए टकराव वाले दावों को सुलझाने की कोशिश करता है।

पृष्ठभूमि

ये मामले कन्नूर, मलप्पुरम, कोझिकोड और पलक्कड़ के खदान संचालकों, ईंट भट्टा मालिकों और ज़मीन धारकों द्वारा दायर किए गए थे। अधिकतर याचिकाकर्ताओं ने अपनी ही ज़मीन से ग्रेनाइट, मिट्टी या चिकनी मिट्टी निकाली थी, यह मानते हुए-सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के आधार पर-कि पूर्व मालाबार क्षेत्र में खनिजों का स्वामित्व ज़मीन मालिक का ही है।

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समस्या तब शुरू हुई जब खनन एवं भूविज्ञान विभाग ने नोटिस जारी कर रॉयल्टी, खनिज मूल्य और जुर्माना माँगना शुरू किया, यह कहते हुए कि खनन “अनधिकृत” था। हालात 2021 में और उलझ गए, जब केरल मिनरल्स (वेस्टिंग ऑफ राइट्स) अधिनियम, 2021 लागू हुआ, जिसने 30 दिसंबर 2019 से पिछली तारीख से सभी खनिज अधिकार राज्य में निहित कर दिए।

याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह कानून बिना मुआवज़ा दिए उनकी संपत्ति छीन लेता है और संवैधानिक संरक्षण का उल्लंघन करता है। दूसरी ओर, राज्य का कहना था कि भले ही ज़मीन निजी हो, लेकिन खनन पर नियंत्रण और रॉयल्टी अनिवार्य है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति एडप्पागथ ने औपनिवेशिक दौर की घोषणाओं से लेकर आधुनिक संवैधानिक कानून तक का विस्तार से ज़िक्र किया। अदालत ने माना कि खनिज “संपत्ति” हैं और खनिज अधिकार छीनना, ज़मीन के एक हिस्से से मालिक को वंचित करने के बराबर है।

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पीठ ने कहा, “मुद्दा केवल स्वामित्व का नहीं है, बल्कि व्यापक जनहित में खनन को नियंत्रित करने की राज्य की शक्ति का भी है।” न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 300A कानून के अधिकार से संपत्ति से वंचित करने की अनुमति देता है, और हर मामले में मुआवज़ा देना स्वतः आवश्यक नहीं होता।

अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया कि 2021 का अधिनियम केवल इसलिए असंवैधानिक है क्योंकि उसमें मुआवज़े का प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने कहा कि विधानमंडल को यह कानून बनाने का अधिकार है और पूरे केरल में एकरूपता लाने के लिए खनिज अधिकार राज्य में निहित करना एक नीतिगत निर्णय है।

हालाँकि, अदालत ने समय-सीमा को लेकर एक अहम अंतर भी स्पष्ट किया। 2021 के कानून के लागू होने से पहले, यानी मालाबार क्षेत्र में पहले किए गए खनन पर रॉयल्टी की माँग को सही नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उस समय खनिजों का स्वामित्व ज़मीन मालिक के पास था।

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फैसला

अपने अंतिम आदेश में, हाईकोर्ट ने केरल मिनरल्स (वेस्टिंग ऑफ राइट्स) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जिसमें इसकी पिछली तारीख से लागू होने की व्यवस्था भी शामिल है। अदालत ने कहा कि 30 दिसंबर 2019 के बाद, निजी ज़मीन पर भी खनिजों के खनन को नियंत्रित करने और रॉयल्टी वसूलने का अधिकार राज्य को है।

हालाँकि, मालाबार क्षेत्र में उस तारीख से पहले किए गए खनन से जुड़े रॉयल्टी और खनिज लागत की माँगों को अदालत ने रद्द कर दिया। इन निर्देशों के साथ सभी संबंधित रिट याचिकाओं का निपटारा कर दिया गया, जिससे वर्षों से चला आ रहा यह जटिल कानूनी विवाद आखिरकार समाप्त हुआ।

Case Title: Tutu Jose & Others vs State of Kerala & Others

Case No.: WP(C) No. 36843 of 2015 and connected cases

Case Type: Writ Petition (Civil)

Decision Date: 19 December 2025

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Official judgment document (PDF)
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