पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने शुक्रवार को फरीदाबाद के एक दहेज उत्पीड़न मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया। अदालत ने साफ कहा कि पुलिस शिकायत में हुई छोटी-मोटी त्रुटियों के आधार पर एफआईआर को शुरुआती स्तर पर ही रद्द नहीं किया जा सकता। मामला न्यायमूर्ति आलोक जैन के समक्ष सुनवाई के लिए आया, जहां दोनों पक्षों की दलीलें सुनी गईं और इसके बाद संक्षिप्त लेकिन स्पष्ट मौखिक आदेश सुनाया गया।
पृष्ठभूमि
यह याचिका मोहम्मद आरिफ और उनके अन्य पारिवारिक सदस्यों की ओर से दायर की गई थी, जिसमें डाबुआ थाना, फरीदाबाद में दर्ज एफआईआर संख्या 212 दिनांक 16 जून 2025 को रद्द करने की मांग की गई थी। एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (चोट पहुंचाना), 498-ए (पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता), 506 (आपराधिक धमकी), 509 (महिला की लज्जा का अपमान) और 34 (साझा मंशा) लगाई गई थीं।
याचिकाकर्ताओं के वकील ने दलील दी कि शिकायत ही आधारहीन है। उनके अनुसार एफआईआर में उल्लेख है कि शिकायतकर्ता ने अपने पति के व्यवहार को लेकर अपनी “सास” से बात की थी, जिस पर उसे दहेज की मांग पूरी न करने की बात कही गई। बचाव पक्ष ने जोर देकर कहा कि शिकायतकर्ता की सास का लगभग 23 वर्ष पहले निधन हो चुका है, ऐसे में यह आरोप असंभव है। इसके अलावा यह भी कहा गया कि याचिकाकर्ता संख्या 3 और 4 दिल्ली के निवासी हैं और कभी भी साझा गृह में नहीं रहे।
अदालत की टिप्पणियां
न्यायमूर्ति आलोक जैन ने एफआईआर का बारीकी से अवलोकन किया और केवल “सास” शब्द के प्रयोग के आधार पर दी गई दलीलों से सहमत नहीं हुए। पीठ ने नोट किया कि पूरे एफआईआर में “सास” शब्द का प्रयोग सिर्फ एक ही स्थान पर हुआ है और शिकायत की शुरुआत में सास को आरोपी के रूप में नामित भी नहीं किया गया है।
पीठ ने टिप्पणी की, “एफआईआर को संपूर्णता में पढ़ा जाना चाहिए,” और यह भी कहा कि सास के खिलाफ कोई ठोस या विस्तृत आरोप मौजूद नहीं है। अदालत के अनुसार यह संदर्भ एक टाइपिंग की गलती या चूक प्रतीत होता है, जिसे आधार बनाकर पूरी कार्यवाही समाप्त नहीं की जा सकती।
अलग-अलग रहने वाले रिश्तेदारों के तर्क पर अदालत ने कहा कि यह तथ्यात्मक विवाद का विषय है। ऐसे मुद्दों का समाधान साक्ष्य के आधार पर ही हो सकता है और एफआईआर रद्द करने की सीमित अधिकार-क्षेत्र में इनका अंतिम निर्णय नहीं किया जा सकता।
अदालत ने यह भी संज्ञान लिया कि पुलिस चालान पेश किए जाने की बात कही गई, हालांकि उसे रिकॉर्ड पर प्रस्तुत नहीं किया गया था।
निर्णय
याचिकाकर्ताओं के वकील की लंबी दलीलें सुनने के बाद हाईकोर्ट ने यह मानते हुए कि मामले में साक्ष्य के आधार पर जांच आवश्यक है, अपने विशेष अधिकारों का प्रयोग करने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति जैन ने याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि आपराधिक कार्यवाही कानून के अनुसार आगे जारी रहेगी।
Case Title: Mohd. Arif and Others vs State of Haryana and Another
Case No.: CRM-M-68436-2025
Case Type: Criminal Petition (Quashing of FIR)
Decision Date: 05 December 2025









