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चेक बाउंस मामले में पूर्ण समझौते के बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने फरार घोषित आरोपी पर दर्ज केस रद्द किए, लागत भी लगाई

रूप सिंह बनाम हरियाणा राज्य, पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने समझौते के बाद चेक बाउंस मामलों में फरारी की एफआईआर रद्द की, लेकिन आरोपी पर चैरिटी को लागत जमा करने का आदेश दिया।

Shivam Y.
चेक बाउंस मामले में पूर्ण समझौते के बाद पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने फरार घोषित आरोपी पर दर्ज केस रद्द किए, लागत भी लगाई

जब न्यायमूर्ति विनोद एस. भर्डवाज ने आदेश पढ़ना शुरू किया तो अदालत कक्ष में शांति थी, लेकिन संदेश साफ था। सोमवार को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने रूप सिंह को राहत देते हुए उसके खिलाफ वर्षों से लंबित कई आपराधिक कार्यवाहियों को रद्द कर दिया। ये कार्यवाहियां तब शुरू हुई थीं, जब चेक बाउंस के विवाद “प्रोक्लेम्ड पर्सन” यानी फरार घोषित किए जाने तक पहुंच गए थे। हालांकि राहत बिना शर्त नहीं थी - अदालत ने एक सामाजिक संस्था के पक्ष में लागत जमा करने का निर्देश भी दिया।

पृष्ठभूमि

मामले की जड़ें निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138, यानी चेक बाउंस से जुड़े मामलों में थीं। आसान शब्दों में, रूप सिंह ने सिरसा की कुछ व्यावसायिक संस्थाओं के पक्ष में चेक जारी किए, जो खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के कारण बाउंस हो गए। इसके बाद आपराधिक शिकायतें दर्ज हुईं, समन जारी हुए और शुरुआत में सिंह अदालत में पेश होता रहा।

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सितंबर 2021 में एक तारीख पर उसकी गैर-हाजिरी से मामला बिगड़ गया। जमानत रद्द हुई और बाद में ट्रायल कोर्ट ने उसे फरार घोषित कर दिया - यानी अदालत ने दर्ज किया कि वह कार्यवाही से बच रहा है। इसके बाद आईपीसी की धारा 174-ए के तहत अलग-अलग एफआईआर दर्ज की गईं, जो अदालत में घोषणा के बाद पेश न होने पर सजा का प्रावधान करती है।

समय के साथ, वित्तीय विवाद सुलझ गए। सिंह ने चेक की पूरी राशि और मुआवजा अदा कर दिया। शिकायतकर्ताओं ने ट्रायल कोर्ट के समक्ष बयान देकर पूर्ण संतुष्टि की बात कही और अपने मामले वापस ले लिए। इसके बावजूद, धारा 174-ए के तहत दर्ज एफआईआर सिंह के सिर पर लटकी रहीं, जिसके चलते हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया।

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अदालत की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति भर्डवाज ने नोट किया कि मूल विवाद पूरी तरह से वित्तीय थे और आपसी समझौते से सुलझ चुके हैं। पीठ ने कहा, “निस्संदेह, निजी पक्षों के बीच चेक राशि से जुड़ा विवाद पूरी तरह सुलझ चुका है।”

राज्य की ओर से दलील दी गई कि धारा 174-ए एक स्वतंत्र अपराध है। यानी, एक बार किसी व्यक्ति को फरार घोषित किए जाने के बाद उसकी गैर-हाजिरी से अपराध पूरा हो जाता है, चाहे बाद में समझौता हो जाए। अदालत ने इस कानूनी स्थिति को स्वीकार किया और इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का भी उल्लेख किया।

फिर भी, हाईकोर्ट ने अपने पुराने फैसलों पर भरोसा किया। पीठ ने कहा कि जब मूल चेक बाउंस मामला ही समझौते के बाद वापस ले लिया गया हो, तो गैर-हाजिरी से जुड़े आपराधिक मामलों को आगे बढ़ाने का कोई ठोस उद्देश्य नहीं बचता। न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि ऐसी कार्यवाही “कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग” होगी।

अदालत ने यह भी माना कि मामले के विशेष तथ्यों में यह जानबूझकर न्याय से भागने का मामला नहीं था और विवाद समाप्त होने के बाद स्थिति वस्तुतः नियमित हो चुकी थी।

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निर्णय

तीनों याचिकाओं को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने रूप सिंह के खिलाफ धारा 174-ए आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर और फरारी की घोषणाओं को, उनसे जुड़ी सभी कार्यवाहियों सहित, रद्द कर दिया। हालांकि राहत को शर्तों के साथ जोड़ा गया। याचिकाकर्ता को प्रत्येक मामले में ₹15,000 रेड क्रॉस ओल्ड एज होम, पंचकूला में, आदेश की प्रमाणित प्रति मिलने के दो महीने के भीतर जमा करने होंगे।

इसी निर्देश के साथ अदालत ने उस विवाद पर विराम लगा दिया, जो चेक बाउंस से शुरू होकर अंततः समझौते और न्यायिक समापन तक पहुंचा।

Case Title: Roop Singh v. State of Haryana

Case Type: Criminal Miscellaneous Petition (Quashing of FIR / Proclamation Proceedings)

Case No.: CRM-M-10310-2024
(Along with CRM-M-10136-2024 and CRM-M-10138-2024)

Date of Judgment / Order: 16 December 2025

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