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गुजरात हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अंबाजी मंदिर ट्रस्ट की सार्वजनिक हैसियत बरकरार, महाराणा के उत्तराधिकारियों की अपील खारिज

महाराजश्री महिपेंद्रसिंहजी परमार वारिस बनाम प्रशासक, श्री अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट, गुजरात हाई कोर्ट ने अंबाजी मंदिर को पब्लिक ट्रस्ट माना और महाराणा के वारिसों के प्राइवेट मालिकाना हक के दावे को खारिज कर दिया। पूरी कानूनी खबर हिंदी में पढ़ें।

Vivek G.
गुजरात हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: अंबाजी मंदिर ट्रस्ट की सार्वजनिक हैसियत बरकरार, महाराणा के उत्तराधिकारियों की अपील खारिज

अहमदाबाद स्थित गुजरात उच्च न्यायालय ने अंबाजी मंदिर से जुड़े दशकों पुराने विवाद पर 24 दिसंबर 2025 को महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि श्री अरसुरी अंबाजी माता देवस्थान एक सार्वजनिक धार्मिक ट्रस्ट है और इसकी ट्रस्ट के रूप में की गई रजिस्ट्रेशन वैध है। इस फैसले के साथ ही दांता रियासत के पूर्व शासक महाराणा के उत्तराधिकारियों की अपील को खारिज कर दिया गया।

यह निर्णय न्यायमूर्ति हेमंत एम. प्रच्छक की एकल पीठ ने सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद दांता रियासत के तत्कालीन शासक महाराणा पृथ्वीराजसिंह के उत्तराधिकारियों और अंबाजी माता देवस्थान ट्रस्ट के बीच था। अपीलकर्ताओं का दावा था कि अंबाजी मंदिर और उससे जुड़ी संपत्तियां उनकी निजी संपत्ति हैं और मंदिर एक निजी मंदिर है, न कि सार्वजनिक।

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दूसरी ओर, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासक ने वर्ष 1961 में बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट के तहत मंदिर को सार्वजनिक ट्रस्ट के रूप में पंजीकृत कराने की प्रक्रिया शुरू की थी। उसी रजिस्ट्रेशन को चुनौती देते हुए यह मामला वर्षों तक जिला अदालत, चैरिटी कमिश्नर और अंततः हाईकोर्ट तक पहुंचा।

कोर्ट के सामने मुख्य रूप से तीन सवाल थे:

  1. क्या अंबाजी मंदिर एक निजी मंदिर है या सार्वजनिक धार्मिक संस्था?
  2. क्या ट्रस्ट का पंजीकरण कानून के अनुरूप किया गया था?
  3. क्या महाराणा परिवार को पूजा-पाठ से जुड़े विशेष अधिकार प्राप्त हैं?

कोर्ट की अहम टिप्पणियां

न्यायालय ने विस्तृत ऐतिहासिक दस्तावेजों, पुराने राजस्व रिकॉर्ड, ब्रिटिश कालीन गजेटियर और पूर्ववर्ती अदालती फैसलों का अध्ययन किया।

पीठ ने कहा,

“रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि मंदिर में सदियों से आम श्रद्धालु बिना रोक-टोक पूजा करते रहे हैं। यह तथ्य मंदिर के सार्वजनिक स्वरूप को दर्शाता है।”

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कोर्ट ने यह भी कहा कि आज़ादी से पहले भले ही महाराणा दांता मंदिर के संरक्षक (कस्टोडियन) रहे हों, लेकिन वे मालिक नहीं थे। आज़ादी के बाद और रियासतों के विलय के पश्चात मंदिर का स्वरूप सार्वजनिक धार्मिक संस्था का ही रहा।

हालांकि ट्रस्ट के पंजीकरण को वैध ठहराया गया, लेकिन कोर्ट ने यह भी माना कि महाराणा परिवार को कुछ परंपरागत धार्मिक विशेषाधिकार प्राप्त हैं।

पीठ ने पूर्व आदेशों का हवाला देते हुए कहा कि महाराणा परिवार को:

  • नवरात्रि की अष्टमी तिथि पर विशेष पूजा करने,
  • हवन करने,
  • देवी के समक्ष चंवर ढुलाने का अधिकार प्राप्त है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ये अधिकार पूजा से जुड़े परंपरागत विशेषाधिकार हैं, न कि संपत्ति पर स्वामित्व।

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अंतिम निर्णय

अंततः हाईकोर्ट ने:

  • महाराणा के उत्तराधिकारियों की फर्स्ट अपील खारिज कर दी।
  • ट्रस्ट द्वारा दायर क्रॉस ऑब्जेक्शन भी खारिज कर दिया।
  • जिला अदालत और चैरिटी कमिश्नर के आदेशों को बरकरार रखा।

अदालत ने दो टूक कहा कि अंबाजी मंदिर एक सार्वजनिक धार्मिक ट्रस्ट है और उसका पंजीकरण कानूनन सही है।

Case Title: Maharanshri Mahipendrasinhji Parmar Heir vs Administrator, Shree Ambaji Mata Devasthan Trust

Case No.: First Appeal No. 2293 of 2009

Case Type: Public Trust Registration Dispute

Decision Date: 24 December 2025

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