साकेत जिला अदालत में शुक्रवार को एक पुराने और भारी-भरकम आपराधिक मुकदमे का अंत हो गया। करीब पंद्रह साल तक चली सुनवाई के बाद अदालत ने शिव मूरत द्विवेदी और उनके सह-आरोपी परवीन कुमार को
पृष्ठभूमि
यह मामला एफआईआर नंबर 54/2010 से जुड़ा है, जो साकेत थाना क्षेत्र में दर्ज की गई थी। पुलिस का आरोप था कि शिव मूरत द्विवेदी 1997 से 2010 के बीच लगातार अवैध गतिविधियों में शामिल रहे और उनके खिलाफ पहले से कई आपराधिक मामले दर्ज थे। इन्हीं पुराने मामलों के आधार पर पुलिस ने एमसीओसीए लगाने की अनुमति मांगी।
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जांच एजेंसी ने दावा किया कि द्विवेदी संगठित अपराध से जुड़े हुए थे और परवीन कुमार उनके करीबी सहयोगी के रूप में काम कर रहे थे। आरोप तय हुए, दोनों ने खुद को निर्दोष बताया और मामला लंबी ट्रायल प्रक्रिया में चला गया। इस दौरान 60 से ज्यादा गवाहों के बयान दर्ज किए गए-पुलिस अधिकारी, बैंक कर्मी, होटल स्टाफ और अन्य लोग।
कोर्ट की टिप्पणियां
फैसला सुनाते हुए अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने साफ शब्दों में कहा कि केवल पुराने एफआईआर की सूची पेश कर देना किसी व्यक्ति को संगठित अपराधी साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने कहा कि एमसीओसीए जैसे सख्त कानून के लिए यह दिखाना जरूरी है कि आरोपी किसी संगठित गिरोह का हिस्सा था और लगातार उसी मकसद से अपराध कर रहा था।
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“अभियोजन यह साबित करने में असफल रहा कि आरोपी के खिलाफ निरंतर अवैध गतिविधियां एमसीओसीए की परिभाषा में आती हैं,” अदालत ने टिप्पणी की।
सुनवाई के दौरान कई गवाह बुनियादी सवालों पर भी स्पष्ट जवाब नहीं दे सके। कुछ पुलिस गवाहों को तारीखें और यात्राओं का ब्योरा याद नहीं था, वहीं आर्थिक लेनदेन और संपत्ति से जुड़े दस्तावेज अदालत को निर्णायक नहीं लगे। न्यायालय ने यह भी कहा कि संदेह के आधार पर सजा नहीं दी जा सकती।
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निर्णय
26 दिसंबर 2025 को साकेत कोर्ट ने यह मानते हुए कि अभियोजन अपना मामला संदेह से परे साबित नहीं कर सका, शिव मूरत द्विवेदी और परवीन कुमार को एमसीओसीए की सभी धाराओं से बरी कर दिया।
Case Title: State vs. Shiv Murat Dwivedi & Anr.
Case No.: SC 7058/2016 (43/15/2015), CNR No. DLST01-000209-2010
Case Type: Criminal Case under Sections 3(1) & 3(2) of the MCOC Act, 1999
Decision Date: 26 December 2025










