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सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश: मकानमालिक की वास्तविक जरूरत पर हाईकोर्ट की दखलंदाजी गलत, बेदखली आदेश बहाल

रजनी मनोहर कुंथा और अन्य। बनाम परशुराम चुन्नीलाल कनौजिया एवं अन्य। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई किरायेदारी मामले में हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए कहा कि मकानमालिक की वास्तविक जरूरत में दखल सही नहीं।

Vivek G.
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट संदेश: मकानमालिक की वास्तविक जरूरत पर हाईकोर्ट की दखलंदाजी गलत, बेदखली आदेश बहाल

नई दिल्ली में मंगलवार 02 December 2025 को सुप्रीम कोर्ट की अदालत में एक पुराना किरायेदारी विवाद अपने निर्णायक मोड़ पर पहुंचा। मामला मुंबई के नागपाड़ा इलाके की एक गैर-आवासीय संपत्ति से जुड़ा था, जहां मकानमालिक ने अपनी बहू की जरूरत के लिए दुकान खाली कराने की मांग की थी।

दो निचली अदालतों से राहत मिलने के बावजूद हाईकोर्ट ने बेदखली आदेश को पलट दिया था। इसी फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील Supreme Court of India में राजनी मनोहर कुंथा बनाम परशुराम चुनिलाल कानोजिया मामले में दायर की गई थी।

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मकानमालिक ने मुंबई के कामाठीपुरा, नागपाड़ा स्थित एक ग्राउंड फ्लोर की व्यावसायिक संपत्ति खाली कराने के लिए मुकदमा दायर किया था। उनका कहना था कि उनकी बहू को व्यवसाय शुरू करने के लिए इस जगह की वास्तविक जरूरत है।

ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत, दोनों ने साक्ष्यों और दलीलों के आधार पर इस जरूरत को “बोना फाइड” यानी वास्तविक माना और किरायेदार के खिलाफ बेदखली का आदेश दिया।

हालांकि, बॉम्बे हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण (रिविजन) अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए इन दोनों फैसलों को पलट दिया, जिसके बाद मकानमालिक सुप्रीम कोर्ट पहुंचे।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियां

न्यायमूर्ति जे.के. महेश्वरी और न्यायमूर्ति विजय बिश्नोई की पीठ ने हाईकोर्ट के रुख पर सख्त टिप्पणी की।

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने पुनरीक्षण अधिकार क्षेत्र में रहते हुए तथ्यों और साक्ष्यों की “सूक्ष्म जांच” की, जो कानूनन अनुमत नहीं है।

अदालत ने स्पष्ट शब्दों में कहा,

“जब ट्रायल कोर्ट और अपीलीय अदालत दोनों ने एक साथ किसी तथ्य को स्थापित कर दिया हो, तब हाईकोर्ट तब तक हस्तक्षेप नहीं कर सकता जब तक अधिकार क्षेत्र का स्पष्ट दुरुपयोग न हो।”

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि किरायेदार मकानमालिक को यह निर्देश नहीं दे सकता कि वह कौन-सी संपत्ति अपने व्यवसाय के लिए उपयुक्त माने।

पीठ ने पहले के फैसले का हवाला देते हुए दोहराया कि मकानमालिक की जरूरत को इस आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता कि कोई वैकल्पिक जगह मौजूद है, खासकर जब वह वैकल्पिक संपत्ति आवासीय प्रकृति की हो।

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अदालत का अंतिम निर्णय

सभी पहलुओं पर विचार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को अधिकार क्षेत्र से बाहर बताया और उसे रद्द कर दिया।

अदालत ने ट्रायल कोर्ट और प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा दिया गया बेदखली आदेश बहाल कर दिया। हालांकि, लंबे समय से दुकान में रह रहे किरायेदार को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति खाली करने के लिए 30 जून 2026 तक का समय दिया।

यह समय इस शर्त पर दिया गया कि किरायेदार एक महीने के भीतर बकाया किराया चुकाएगा और आगे नियमित रूप से मासिक किराया देता रहेगा। साथ ही, उसे तीन सप्ताह के भीतर बॉम्बे हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार के समक्ष लिखित अंडरटेकिंग भी दाखिल करनी होगी।

अदालत ने स्पष्ट किया कि शर्तों का उल्लंघन होने पर मकानमालिक को तुरंत डिक्री लागू कराने का अधिकार होगा।

Case Title: Rajani Manohar Kuntha & Ors. vs Parshuram Chunilal Kanojiya & Ors.

Case No.: Civil Appeal arising out of SLP (C) No. 30407 of 2024

Case Type: Tenancy / Eviction Matter

Decision Date: 02 December 2025

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