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₹50 लाख पेट्रोल पंप साझेदारी विवाद पर दिल्ली की कमर्शियल कोर्ट का फैसला: निवेशक के हक में डिक्री

दिल्ली कमर्शियल कोर्ट ने पेट्रोल पंप साझेदारी विवाद में ₹50 लाख वसूली का आदेश दिया, डीज़ल बिक्री का दावा खारिज किया।

Vivek G.
₹50 लाख पेट्रोल पंप साझेदारी विवाद पर दिल्ली की कमर्शियल कोर्ट का फैसला: निवेशक के हक में डिक्री

रोहिणी कोर्ट परिसर में बुधवार को हलचल कुछ ज़्यादा थी। दोपहर बाद जब फैसला पढ़ा गया, तो साफ हो गया कि यह केवल पैसों का मामला नहीं था, बल्कि भरोसे और लिखित समझौते की कमी का भी था। दिल्ली की कमर्शियल कोर्ट ने टाइम्स इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड को ₹50 लाख की वसूली का हकदार ठहराया, यह कहते हुए कि रकम साझेदारी के लिए दी गई थी, न कि डीज़ल खरीद के लिए, जैसा कि प्रतिवादियों ने दावा किया था।

Background

मामला नवंबर 2019 से जुड़ा है। टाइम्स इंफ्रास्ट्रक्चर का कहना था कि बक्शी एंटरप्राइजेज द्वारा संचालित रोहिणी–मंगोलपुरी पेट्रोल पंप में 50% साझेदारी दिलाने का भरोसा दिया गया। इसी भरोसे पर कंपनी ने बैंकिंग चैनल के ज़रिये ₹50 लाख ट्रांसफर किए।

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दूसरी तरफ, बक्शी एंटरप्राइजेज ने कहानी को अलग मोड़ दिया। उनका कहना था कि यह रकम पेट्रोलियम उत्पादों, खासकर डीज़ल, की अग्रिम खरीद के लिए थी। सुरक्षा के तौर पर दो बिना तारीख़ वाले चेक दिए गए थे, जिनका साझेदारी से कोई लेना-देना नहीं था।

समस्या तब बढ़ी जब न तो साझेदारी का कोई लिखित दस्तावेज़ सामने आया और न ही पैसा वापस हुआ। अंततः मामला अदालत पहुंचा।

Court’s Observations

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सबसे पहले एक अहम बात दर्ज की-₹50 लाख की प्राप्ति से प्रतिवादी इनकार नहीं कर रहे थे। यहीं से मामला पलटा। “जब भुगतान स्वीकार कर लिया गया है, तो यह दिखाना प्रतिवादियों की जिम्मेदारी थी कि रकम किसी और लेन-देन के लिए थी,” अदालत ने टिप्पणी की।

डीज़ल बिक्री के दावे पर कोर्ट खासा सख्त दिखी। न तो डिलीवरी चालान पेश किए गए, न ट्रांसपोर्ट के काग़ज़, न ही ऐसे दस्तावेज़ जो यह साबित कर सकें कि वाकई डीज़ल सप्लाई हुई थी। कोर्ट ने कहा कि जिन कैश मेमो और लेजर का हवाला दिया गया, वे न तो विधिवत साबित हुए और न ही उनके लेखक को गवाही के लिए लाया गया।

चेकों को लेकर भी कोर्ट ने साफ रुख अपनाया। हालांकि चेक दिवंगत पार्टनर के जीवनकाल में प्रस्तुत नहीं किए गए थे, लेकिन उनके हस्ताक्षर पर कोई ठोस आपत्ति या विशेषज्ञ राय सामने नहीं रखी गई। अदालत ने माना कि चेक इस बात की पुष्टि करते हैं कि रकम को लेकर कोई गंभीर लेन-देन था।

गवाहों की गवाही पर भी कोर्ट ने ध्यान दिया। प्रतिवादी पक्ष की गवाही को “सुन-सुनाई बातों पर आधारित” बताते हुए कहा गया कि ऐसे बयान ठोस बैंक रिकॉर्ड और सुसंगत साक्ष्यों के सामने टिक नहीं सकते।

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Decision

इन सभी तथ्यों को देखते हुए कमर्शियल कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ₹50 लाख साझेदारी के उद्देश्य से दिए गए थे और प्रतिवादी इसे किसी अन्य व्यापारिक लेन-देन के रूप में साबित करने में असफल रहे। अदालत ने टाइम्स इंफ्रास्ट्रक्चर के पक्ष में ₹50 लाख की वसूली की डिक्री पारित की और मुकदमा दायर करने की तारीख से 9% वार्षिक ब्याज देने का आदेश दिया, साथ ही प्रतिवादियों को संयुक्त रूप से जिम्मेदार ठहराया।

Case Title: Times Infrastructure Pvt. Ltd. vs Bakshi Enterprises & Ors.

Case No.: CS (Comm.) 739/2022

Case Type: Commercial Suit for Recovery of Money

Decision Date: 18 December 2025

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