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दिल्ली हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक बरकरार रखा, पत्नी के झूठे आरोपों और हमले को बताया ‘असहनीय और अक्षम्य आचरण’

दिल्ली उच्च न्यायालय ने क्रूरता के आधार पर तलाक को बरकरार रखा, पत्नी द्वारा बार-बार झूठे आरोप लगाने, शारीरिक उत्पीड़न और लंबी मुकदमेबाजी को अपूरणीय वैवाहिक विघटन के सबूत के रूप में उद्धृत किया। - सुश्री अनुपमा शर्मा बनाम श्री संजय शर्मा

Shivam Y.
दिल्ली हाईकोर्ट ने क्रूरता के आधार पर तलाक बरकरार रखा, पत्नी के झूठे आरोपों और हमले को बताया ‘असहनीय और अक्षम्य आचरण’

लंबे समय से चल रहे कटु आरोपों और पुलिस शिकायतों के बीच दिल्ली हाईकोर्ट ने एक अहम निर्णय में पति को दिए गए तलाक के आदेश को बरकरार रखा है। न्यायमूर्ति अनिल क्षेतरपाल और न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने कहा कि पत्नी के "बार-बार किए गए बेबुनियाद आरोप और हिंसक व्यवहार" ने विवाह को असंभव बना दिया है।

अदालत ने माना कि शारीरिक हमला, झूठे आपराधिक मामले और वर्षों तक चली कानूनी प्रताड़ना ने पति को मानसिक रूप से तोड़ दिया, जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(ia) के अंतर्गत "क्रूरता" की परिभाषा में आता है।

पृष्ठभूमि

अनुपमा शर्मा और संजय शर्मा का विवाह वर्ष 1997 में उत्तर प्रदेश के शामली में हुआ था। एक वर्ष बाद दंपति के पुत्र का जन्म हुआ। प्रारंभिक वर्षों के बाद यह विवाह धीरे-धीरे अदालतों और पुलिस थानों तक पहुंच गया।

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पत्नी ने दहेज की मांग, उत्पीड़न और पति की बेवफाई के आरोप लगाए और कहा कि गर्भावस्था के दौरान उसे घर से निकाल दिया गया। उसने कई पुलिस शिकायतें दर्ज कराईं, जिनमें एफआईआर संख्या 217/2013 Sections 498A और 323 आईपीसी के तहत शामिल थी।
दूसरी ओर, पति ने आरोप लगाया कि पत्नी ने उसके क्लिनिक में हमला किया, सार्वजनिक रूप से अपमानित किया और झूठे मामलों में फँसाया जिससे उसकी गिरफ्तारी हुई और सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँची।

साल 2012 तक दोनों अलग रहने लगे और पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक के लिए पारिवारिक अदालत का दरवाजा खटखटाया।

अदालत के अवलोकन

सालों तक चले मुकदमों और शिकायतों की जांच के बाद हाईकोर्ट ने माना कि पारिवारिक अदालत द्वारा दिया गया तलाक पूरी तरह न्यायोचित था।

अदालत ने कहा-

"अपीलकर्ता-पत्नी ने बार-बार आपराधिक शिकायतें दर्ज कराईं, जिनमें से अधिकांश निराधार थीं। इन कार्रवाइयों से पति को लंबे समय तक मानसिक यातना और अपमान झेलना पड़ा।"

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न्यायालय ने पाया कि पति पर लगाए गए अवैध संबंधों के आरोपों का कोई प्रमाण नहीं दिया गया।

"बिना प्रमाण के चरित्र पर लगाये गये आरोप विवाह की जड़ पर वार करते हैं," पीठ ने कहा, यह जोड़ते हुए कि ऐसे "लापरवाह और अपमानजनक आरोप मात्र शब्द नहीं बल्कि ऐसे हथियार हैं जो किसी व्यक्ति की गरिमा और मानसिक शांति को घायल कर देते हैं।"

सुप्रीम कोर्ट के फैसलों जैसे विजयकुमार रामचंद्र भाटे बनाम नीला भाटे और राज तलरेजा बनाम कविता तलरेजा का हवाला देते हुए अदालत ने दोहराया कि झूठे आरोप और कानूनी प्रावधानों जैसे 498A का दुरुपयोग मानसिक क्रूरता का स्वरूप है।

अदालत ने यह भी पाया कि पत्नी अपने दहेज उत्पीड़न या हिंसा के आरोपों को साबित नहीं कर सकी।

"उसके आचरण से वर्षों तक चलने वाली प्रताड़ना और मुकदमेबाजी का एक स्पष्ट पैटर्न सामने आता है," न्यायमूर्ति शंकर ने कहा।

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साक्ष्यों का विश्लेषण

न्यायाधीशों ने विशेष रूप से 21 अप्रैल 2013 की घटना पर ध्यान दिया, जब पत्नी कथित रूप से अपने रिश्तेदारों के साथ पति के उत्तर प्रदेश स्थित क्लिनिक में गई और हमला किया। इस झगड़े में क्लिनिक की संपत्ति को भी नुकसान पहुंचा।

भले ही पति ने उस समय कोई शिकायत नहीं दी, अदालत ने कहा कि “वैवाहिक संबंध में किसी भी प्रकार की शारीरिक हिंसा को किसी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।”

अदालत ने यह भी देखा कि पत्नी द्वारा दर्ज कराए गए कई आपराधिक मामले-कुछ तो तलाक याचिका के बाद भी-स्पष्ट रूप से प्रतिशोधात्मक प्रकृति के थे। "2012 से चली आ रही अलगाव की स्थिति और लगातार झूठे आरोप इस बात का प्रमाण हैं कि यह विवाह अब पुनःस्थापित नहीं किया जा सकता," अदालत ने कहा।

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अदालत का निर्णय

पत्नी की अपील को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने पारिवारिक अदालत के 7 जून 2022 के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें विवाह को क्रूरता के आधार पर समाप्त घोषित किया गया था।

अदालत ने कहा-

"रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि उत्तरदाता-पति को गंभीर मानसिक और शारीरिक क्रूरता झेलनी पड़ी। अपीलकर्ता-पत्नी की लगातार झूठी शिकायतें और अपमानजनक आरोपों ने उसे मानसिक और सामाजिक रूप से तोड़ दिया। ऐसी परिस्थितियों में किसी व्यक्ति से साथ रहने की उम्मीद नहीं की जा सकती।"

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि "अपरिवर्तनीय वैवाहिक विघटन" (irretrievable breakdown of marriage) कानून में स्वतंत्र आधार नहीं है, परंतु जब विवाह दोनों पक्षों के लिए यातना बन जाए, तब ऐसी स्थिति स्वयं क्रूरता के दायरे में आ जाती है।

39 पृष्ठों के विस्तृत निर्णय का समापन करते हुए न्यायमूर्ति हरीश वैद्यनाथन शंकर ने कहा-

"ऐसे विवाह को जीवित रखना केवल दोनों पक्षों के कष्ट को बढ़ाएगा। पारिवारिक अदालत द्वारा दिया गया तलाक आदेश यथावत रहेगा। प्रत्येक पक्ष अपने खर्च स्वयं वहन करेगा।"

Case Title: Ms. Anupama Sharma v. Shri Sanjay Sharma

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