मेन्यू
समाचार खोजें...
होम

पटना हाईकोर्ट ने DMCH स्टाफ की सज़ा रद्द की, कहा– जांच में न गवाह न सबूत; ICU ऑक्सीजन केस में बड़ी राहत

बिंदेश्वरी यादव एवं अन्य बनाम बिहार राज्य - पटना उच्च न्यायालय ने डीएमसीएच कर्मचारियों के विरुद्ध सजा को रद्द करते हुए फैसला सुनाया कि जांच में कोई सबूत नहीं थे। न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को वेतन लाभ और बकाया राशि देने का आदेश दिया।

Shivam Y.
पटना हाईकोर्ट ने DMCH स्टाफ की सज़ा रद्द की, कहा– जांच में न गवाह न सबूत; ICU ऑक्सीजन केस में बड़ी राहत

पटना हाईकोर्ट ने दरभंगा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (DMCH) के तीन कक्षा-चतुर्थ (Class-IV) कर्मचारियों पर लगे अनुशासनात्मक दंड को रद्द कर दिया है। अदालत ने पाया कि 2015 में ICU में ऑक्सीजन की कमी से मरीजों की मौत के मामले में की गई जांच “बिना सबूत और बिना गवाह” के की गई थी। यह आदेश 24 दिसंबर 2025 को जस्टिस पार्थ सारथी ने सुनाया।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता बिंदेश्वरी यादव, अमलेश प्रसाद और शंभू साह DMCH में कक्ष सेवक (Kaksha Sevak) के पद पर कार्यरत थे। 25 सितंबर 2015 को ICU में ऑक्सीजन आपूर्ति बाधित होने से तीन मरीजों की मौत की घटना के बाद उन्हें निलंबित कर दिया गया।

23 मई 2017 को अस्पताल प्रशासन ने उनकी वेतन वृद्धि रोकते हुए निंदा प्रविष्टि और बकाया वेतन/भत्ते न देने की सज़ा सुनाई। इसी आदेश को चुनौती देते हुए कर्मचारी हाईकोर्ट पहुँचे।

Read also:- सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: दशकों पुराने बंधक विवाद में मोर्टगेजर का रिडेम्पशन अधिकार बरकरार, अपील खारिज

याचिकाकर्ताओं की दलील

कर्मचारियों ने अदालत में कहा कि विभागीय कार्यवाही नियमों के खिलाफ थी और जांच में निष्पक्षता नहीं बरती गई। महत्वपूर्ण आरोप इस प्रकार थे:

  • किसी भी गवाह को प्रस्तुत नहीं किया गया
  • कोई दस्तावेज़ प्रमाण के रूप में साबित नहीं किया गया
  • जांच रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई
  • पूरी कार्यवाही “नो एविडेंस केस” थी

उनका कहना था कि बिना साक्ष्य दिए दंड देना कानून के खिलाफ है।

सरकार का पक्ष

राज्य की तरफ से कहा गया कि कर्मचारियों की ड्यूटी में लापरवाही से ICU में ऑक्सीजन नहीं मिल पाई, जिसकी वजह से मौतें हुईं। इसलिए अनुशासनात्मक कार्रवाई सही थी और इसे रद्द नहीं किया जाना चाहिए।

Read also:- इलाहाबाद हाईकोर्ट का बड़ा फैसला: नगर पंचायत चुनाव याचिका में देरी माफी अवैध, अध्यक्ष पद पर ओंकार गुप्ता बहाल

अदालत की टिप्पणियाँ

रिकॉर्ड देखने के बाद अदालत ने पाया कि जांच में न गवाह थे, न वैध प्रमाण जिससे पूरी कार्यवाही अवैध हो जाती है।

अदालत ने टिप्पणी की:

“एक भी गवाह प्रस्तुत नहीं किया गया… न कोई दस्तावेज़ साबित हुआ… इससे अधिक सतही (perfunctory) जांच नहीं हो सकती।”

“संदेह चाहे कितना भी गहरा हो, वह कानूनी प्रमाण का विकल्प नहीं बन सकता।”

Read also:- त्रिपुरा छात्र की देहरादून में मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट में PIL: नस्लीय हिंसा को ‘संवैधानिक विफलता’ बताया गया

अदालत का अंतिम फैसला

हाईकोर्ट ने 23 मई 2017 का दंड आदेश रद्द करते हुए कर्मचारियों को राहत दी और तीन महीने के भीतर बकाया वेतन व लाभ देने का निर्देश दिया।

“दंड आदेश टिकाऊ नहीं है और इसे रद्द किया जाता है।”

इस तरह याचिका स्वीकार कर ली गई और कर्मचारियों को सभी सेवा लाभ बहाल करने का आदेश दिया गया।

Case Title: Bindeshwari Yadav & Ors. vs. The State of Bihar

Case Number: Civil Writ Jurisdiction Case (CWJC) No. 17213 of 2021

Judgment Date: 24 December 2025

More Stories