मुंबई में 30 दिसंबर की रात बॉम्बे हाईकोर्ट में एक असाधारण सुनवाई हुई। मामला इतना तत्काल था कि अदालत को मुख्य न्यायाधीश के निवास पर रात 8 बजे बैठना पड़ा। सवाल साफ था-क्या नगर निगम चुनाव के लिए अदालतों के कर्मचारियों को ड्यूटी पर लगाया जा सकता है?
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला सुओ मोटो रिट याचिका (2025) के रूप में सामने आया। रिकॉर्ड के अनुसार, 22 दिसंबर 2025 को बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के आयुक्त और जिला निर्वाचन अधिकारी ने अधीनस्थ अदालतों के कर्मचारियों को 30 दिसंबर को चुनावी कार्य के लिए बुलाने का पत्र जारी किया था।
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अदालत प्रशासन ने तुरंत आपत्ति जताई और बताया कि वर्ष 2008 में ही हाईकोर्ट की प्रशासनिक न्यायाधीश समिति ने निर्णय लिया था कि हाईकोर्ट और अधीनस्थ अदालतों का स्टाफ चुनाव ड्यूटी से मुक्त रहेगा।
अदालत की सुनवाई
जब अदालत की बैठक शुरू हुई, तो राज्य सरकार, बीएमसी और राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से वकील उपस्थित हुए। बीएमसी की ओर से कुछ समय मांगा गया, लेकिन कोर्ट ने रिकॉर्ड और संवैधानिक प्रावधानों पर सीधा ध्यान दिया।
मुख्य न्यायाधीश और न्यायमूर्ति अश्विन डी. भोंबे की पीठ ने याद दिलाया कि संविधान के तहत अधीनस्थ अदालतों पर पूरा नियंत्रण हाईकोर्ट का होता है। पीठ ने कहा कि चुनाव कानूनों में भी कहीं यह नहीं लिखा है कि अदालतों के कर्मचारियों को अनिवार्य रूप से चुनावी कार्य में लगाया जा सकता है।
संवैधानिक और कानूनी पहलू
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 235 और 243-K व 243-ZA का हवाला दिया। साथ ही, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 159 का उल्लेख किया गया, जिसमें जिन संस्थाओं के स्टाफ को चुनाव कार्य के लिए बुलाया जा सकता है, उनकी सूची में अदालतें शामिल नहीं हैं।
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पीठ ने चुनाव आयोग के 7 जून 2023 के पत्र की ओर भी ध्यान दिलाया, जिसमें कहा गया है कि न्यायिक अधिकारियों या कर्मचारियों को केवल हाईकोर्ट की पूर्व अनुमति से ही, वह भी असाधारण परिस्थितियों में, चुनाव कार्य में लगाया जा सकता है।
कोर्ट की सख्त टिप्पणी
सुनवाई के दौरान पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा,
“अदालतों के कर्मचारी न्यायिक व्यवस्था का अभिन्न हिस्सा हैं। उन्हें बिना अधिकार के चुनाव ड्यूटी के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।”
जब बीएमसी के वकील ने 29 दिसंबर के पत्र को वापस लेने का अनुरोध किया, तो अदालत ने इसे स्वीकार नहीं किया।
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कोर्ट का फैसला
अदालत ने नगर आयुक्त-सह-जिला निर्वाचन अधिकारी को निर्देश दिया कि वे अदालत स्टाफ को भेजे गए सभी पत्रों पर कोई कार्रवाई न करें। साथ ही, भविष्य में हाईकोर्ट या अधीनस्थ अदालतों के कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी के लिए कोई भी पत्र जारी करने पर रोक लगा दी गई।
इसके अलावा, नगर आयुक्त को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया गया है, जिसमें यह बताया जाए कि उन्होंने किस अधिकार के तहत ऐसा निर्देश जारी किया। राज्य निर्वाचन आयोग, भारत निर्वाचन आयोग और महाराष्ट्र सरकार को भी हलफनामा दाखिल करने के निर्देश दिए गए। मामला अब 5 जनवरी 2026 को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।
Case Title: In Re: Order dated 29 December 2025 by Municipal Commissioner
Case No.: Suo Motu Writ Petition (2025)
Case Type: Constitutional / Election Matter
Decision Date: 30 December 2025










