बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने उस शादी को कानूनी रूप से खत्म करने का फैसला किया, जो जजों के शब्दों में, लगभग दो दशकों से केवल कागज़ों में ही चल रही थी। पंजाब के दो सरकारी स्कूल शिक्षकों के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद की सुनवाई करते हुए, शीर्ष अदालत ने संविधान के
यह मामला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष आया, जहां दोनों पक्ष स्वयं अदालत में मौजूद थे। कोर्ट का माहौल गंभीर था और जज यह समझने की कोशिश कर रहे थे कि क्या अब भी किसी तरह की सुलह की कोई गुंजाइश बची है। ऐसा नहीं था।
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पृष्ठभूमि
जतिंदर कुमार और जीवन लता की शादी जून 2003 में पंजाब के मोरिंडा में हुई थी। इस विवाह से कोई संतान नहीं हुई। दोनों अपने-अपने करियर में सरकारी स्कूलों में शिक्षक बने रहे।
पति के अनुसार, शादी के कुछ ही वर्षों बाद रिश्ते में दरार आने लगी। उन्होंने बीमारी के दौरान उपेक्षा, दस्तावेजों को लेकर विवाद और अंततः यह आरोप लगाया कि 2005 में पत्नी मायके चली गईं और फिर कभी वापस नहीं लौटीं। इसके बाद कई कानूनी कार्यवाहियां शुरू हुईं, जिनमें दांपत्य अधिकारों की बहाली की एक याचिका (जो बाद में वापस ले ली गई) और फिर क्रूरता व परित्याग के आधार पर तलाक की याचिका शामिल थी।
ट्रायल कोर्ट ने 2012 में तलाक की याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि आरोप साबित नहीं हो पाए। 2014 में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने भी उस फैसले को बरकरार रखा, जिसके बाद पति को सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा।
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अदालत की टिप्पणियां
सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि आरोपों पर चाहे जो भी विवाद हो, एक तथ्य निर्विवाद है-दोनों पक्ष लगभग 20 वर्षों से अलग रह रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट मध्यस्थता केंद्र सहित सुलह के सभी प्रयास विफल रहे।
पीठ ने टिप्पणी की, “ऐसी परिस्थितियों में वैवाहिक बंधन को जारी रखना किसी सार्थक उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता और केवल दोनों पक्षों की पीड़ा को बढ़ाता है,” जिससे यह साफ हो गया कि अदालत इस लंबे गतिरोध को समाप्त करने के पक्ष में है।
हालांकि पत्नी ने तलाक का विरोध किया और कहा कि पति ने कभी ईमानदारी से समझौते की कोशिश नहीं की, लेकिन अदालत का मानना था कि यह विवाह अब पूरी तरह से टूट चुका है। जजों ने यह भी रेखांकित किया कि अनुच्छेद 142 का उद्देश्य ही ऐसे मामलों में “पूर्ण न्याय” करना है, जहां कानून का सख्त पालन केवल पीड़ा को लंबा करेगा।
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फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए विवाह को भंग कर दिया और ट्रायल कोर्ट व हाई कोर्ट के पूर्व आदेशों को रद्द कर दिया। आर्थिक समझौते के सवाल पर अदालत ने ध्यान दिया कि दोनों ही पक्ष सरकारी शिक्षक हैं। हालांकि पति ने शुरू में ₹15 लाख स्थायी गुजारा भत्ता देने की पेशकश की थी, लेकिन अदालत ने एकमुश्त और अंतिम निपटान के रूप में ₹20 लाख की राशि तय की।
अदालत ने निर्देश दिया कि यह राशि दो महीने के भीतर अदा की जाए, जिसके बाद तलाक की डिक्री औपचारिक रूप से जारी की जाएगी। साथ ही यह भी आदेश दिया गया कि यदि दोनों पक्षों के बीच कोई दीवानी या आपराधिक मामले लंबित हैं, तो वे सभी समाप्त माने जाएंगे, जिससे इस लंबे विवाद पर पूर्ण विराम लग जाएगा।
Case Title: Jatinder Kumar vs. Jeewan Lata
Case No.: Civil Appeal arising out of SLP (C) No. 35588 of 2025 @ D. No. 17190 of 2024
Case Type: Civil Appeal (Matrimonial Dispute – Divorce under Hindu Marriage Act / Article 142)
Decision Date: December 18, 2025










